श्रृंगार रस का अनुभाव है-
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श्रृंगार रस का अनुभाव - अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, कटाक्ष, अश्रु आदि । श्रृंगार रस का संचारी भाव - हर्ष, जड़ता, निर्वेद, अभिलाषा, चपलता, आशा, स्मृति, रुदन, आवेग, उन्माद आदि।
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श्रृंगार रस-शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का सहज आकर्षण है। स्त्री-पुरुष में सहज रूप से विद्यमान रति नामक स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारीभाव के संयोग से आनंद लेने योग्य हो जाता है, तब इसे शृंगार रस कहते हैं।
अनुभूतियों के आधार पर शृंगार रस के दो भेद होते हैं –
(क) संयोग शृंगार रस
(ख) वियोग शृंगार रस
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