शेरों के जबड़े खुलवाकर, थे जहाँ भरत दतुली गिनते, जिन
जयमल-पत्ता अपने आगे, थे नहीं किसी को कुछ गिनते !
इस कारण हम तुमसे बढ़कर, हम सबके आगे चुप रहिए।
अजी चुप रहिए, हाँ चुप रहिए । हम उस धरती के लड़के हैं..
भावाथ
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