Hindi, asked by myrishabh098, 5 months ago

शेरा कंपनी के कंबल के लिए एक विज्ञापन तैयारी कीजिए और हिंदी में समझाइए​

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Answered by Rahil2804
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Explanation:

पानीपत। पानीपत कंबल मार्केट के लिए यह खुशखबरी है! कई साल पहले चीनी कंबल के आगे घुटने टेकने वाले लोकल कंबल ने इस बार इसे पछाड़ दिया है। करीब पांच साल पहले जहां लोकल कंबल का बाजार चीनी के 75 फीसदी के मुकाबले सिमटकर 25 फीसदी रह गया था वह अब चीन को पछाड़कर 55 फीसदी पहुंच गया है। चीनी कंबल को पछाड़ने का श्रेय हाई टेक मशीनरी, नई तकनीक, पालिस्टर यार्न और नए डिजाइन को जाता है। कंबल उद्यमियों की माने तो भविष्य में चीनी मिंक कंबल धीरे-धीरे कर मार्र्र्केट से विदा हो जाएगा।

पानीपत का कंबल उद्योग करीब छह दशक पुराना है। यहां पर करीब तीन सौ फैक्ट्रियाें में शौडी यार्न से कंबल तैयार होता था जिसकी सप्लाई देशभर के अधिकतर राज्याें के साथ-साथ भारतीय सेना में होती थी। इसी बीच अकर्लिक यार्न कंबल ने बाजार में एंट्री मारी। नरम और इस कंबल की आयु अधिक होने के कारण धीरे-धीरे यह मार्केट में जम गया। हालांकि पानीपत में अकर्लिक यार्न से तैयार होने वाले कंबल की गिनती की फैक्ट्रियां थीं मगर पंजाब और उत्तर भारत के कई प्रदेशों में तैयार होने वाले कंबल की ट्रेडिंग पानीपत में ही होती थी।

चीनी मिंक कंबल ने मचाई हलचल

वहीं करीब सात साल पहले चीनी मिंक कंबल ने बाजार में प्रवेश कर हलचल मचा दी। यह पॉलिस्टर यार्न से तैयार होता था। इसकी आयु अकर्लिक यार्न से तैयार होने वाले कंबल से लंबी, वजन और कीमत कम थी। रेट में सस्ते और अन्य खूबियों के चलते कम समय में चीनी मिंक कंबल ने बाजार में अपना कब्जा जमा लिया। आलम यह था कि करीब पांच साल पहले चीनी मिंक कंबल की हिस्सेदारी 75 और लोकल की सिमट कर 25 फीसदी रह गई। जिसके चलते पानीपत के कंबल उद्योग पर संकट के बादल मंडराने लगे।

मशीनरी और तकनीक के बूते जमाए पैर

चीनी मिंक का मुकाबला करने के लिए कंबल निर्माताओं ने पुरानी मशीनरी, तकनीक को अलविदा कह कर हाईटेक मशीनरी, नई तकनीक, डिजाइन और पॉलिस्टर यार्न का इस्तेमाल शुरू किया। इससे कंबल की लागत कम हो गई और चीनी मिंक को टक्कर में खड़ा हो गया। हालांकि चीनी मिंक कई मायने में आज भी लोेकल उत्पाद से सस्ता पड़ता है। मगर कई साल तक इस्तेमाल के बाद लोगाें को उसकी क्वालिटी की असलियत मालूम हो गई। हल्की क्वालिटी के चलते लोगोें का चीनी मिंक के प्रति मोह कम हो गया। यही वजह है कि आज मार्केट में लोकल कंबल की हिस्सेदारी 25 से बढ़कर 55 तथा चीनी मिंक की 75 से घटकर 45 फीसदी तक पहुंच चुकी है।

सबसे बड़ी मार्केट है पानीपत में

पानीपत में शौडी यार्न कंबल का देश का सबसे बड़ा बाजार रहा है। उसके बाद अकर्लिक यार्न कंबल की ट्रेेडिंग भी यहीं पर होने लगी। यही हाल मिंक कंबल का रहा। आज पानीपत में कंबल मार्र्केट में करीब 550 थोक ट्रेडर्स कारोबार कर रहे हैं। यहां से देश के सभी राज्याें के व्यापारी थोक में कंबल खरीदने के लिए पहुंचते हैं। देश में कंबल का रेट भी पानीपत की मार्केट से ही तय होता है। कंबल उद्यमियाें की माने तो पानीपत का कंबल बाजार करीब 1100 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।

ये है कंबलाें की रेंज

शौडी यार्न से बना कंबल 90 से 250 रुपये प्रति पीस

अकर्लिक यार्न से बना कंबल 700 से 1500 रुपये

पॉलिस्टर यार्न से बना कंबल 700 से 3200 रुपये

कोरियन मिंक 4000 से 6200 रुपये

वर्जन

नई तकनीक के बूते लोकल उत्पाद की लागत कम होने और चीनी क्वालिटी की पोल खुलने के बाद अब धीरे-धीरे चीनी कंबल का बाजार गिरता जा रहा है वहीं लोकल उत्पाद की मार्केट उठान पर है। पानीपत का करीब 1100 करोड़ का कंबल बाजार का भविष्य एक बार फिर चमकदार नजर आ रहा है।

काकू बंसल, संरक्षक, पानीपत कंबल निर्माता संघ

Answered by macwanp75
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