श्री कृष्ण का बचपन आपके बचपन से किस प्रकार अलग था?
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मैं बचपन में जिन कहानियों और किस्सों को सुनकर बड़ी हुई हूं, उन कहानियों को आज वैसे नहीं देखती जैसे तब देखती थी. आज के दिन की अगर बात करूं तो कुछ कहानियों, किस्सों, रीतियों और नाटकों से मेरी थोड़ी असहमति है, कुछ से पूरी असहमति है और अभी भी मेरी सोच में लगातार बदलाव आ रहे हैं.
सहमति, असहमति और अपनी राय बनाने के लिए किसी का पक्ष सुनना जरूरी होता है लेकिन आज के समय में इसकी बहुत कमी है. आप सत्ता द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर सवाल नहीं कर सकते हैं, आस्था तो फिलहाल दूर की कौड़ी है.
वह भी ऐसे वक्त में आस्था पर बात करना और भी मुश्किल है जब धर्म व राजनीति में धागे भर का फर्क नहीं रह गया है.
इसके अलावा मॉब लिंचिंग के इस दौर में आप समाज को भी असहिष्णु नहीं कह सकते हैं क्योंकि जवाब आएगा अगर लोग असहिष्णु होते तो मैं यह सब लिख और बोल नहीं पाती.
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