श्रीकांत को कक्षा का मॉनिटर क्यों बनाया गया
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यहां पर दो प्रश्न हैं। जी हां, मैं अपने कक्षा का मॉनिटर बन चुका हूं, वह भी 2 बार। पहली बार अस्थाई तौर पर शायद कक्षा 2 में और दूसरी बार कक्षा 12 में।
कक्षा का मॉनिटर बनना छोटी कक्षाओं में अच्छा होता था, क्योंकि छोटी कक्षाओं में कक्षा मॉनिटर को होनहार तथा मेधावी समझा जाता था, लेकिन बड़ी कक्षाओं में शिक्षक समझ जाते थे कि लगभग सब बच्चे नालायक ही हैं तो छात्रों को मॉनिटर बनने का कुछ ज्यादा फायदा नहीं होता था, ऊपर से मजदूर बना दिए जाते थे सो अलग। शिक्षक के कक्षा में कॉपियों का ढेर पहुंचाओ तो कभी शिक्षक का काम में मदद करो। कभी-कभी तो आफत हो जाती थी।
हम होनहार तो बचपन से ही थे लेकिन बातूनी भी थे और शैतानी भी करते थे। मॉनिटर बनने की इच्छा बचपन से थी लेकिन जब बने तो अस्थाई बने और कक्षा 10 में बनते-बनते रह गए (दोस्तों की बदमाशी के कारण)। फिर कक्षा 11 आते-आते इच्छा खत्म हो गई। कक्षा 11-12 में प्रभाव जमाना था और थोड़ा ज़िंदगी जीने की इच्छा हुई तो मॉनिटर बनना बोरिंग लगने लगा।
जब कक्षा 12 में गए तो दोस्तों ने शैतानी में मॉनिटर के लिए हमारा ही नाम बोल दिया (उस दिन पता चला दोस्त कमीने होते हैं)। लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। हमारी भी शिक्षिका भी ऐसी, नाम वर्षा था लेकिन आग उगलती थीं, मना करने का सवाल ही नहीं था, मजबूरी में बन गए।
कहने को तो मॉनिटर को कक्षा को अनुशासन में रखना होता है लेकिन शैतानियों में कभी-कभार हम खुद शामिल रहते थे और जब कभी भूले-बिसरे अगर किसी शिक्षक ने पूछ लिया तो किसी का नाम नहीं बताते थे, अब सब ठहरे यार-दोस्त।
मॉनिटर बनने पर एक मॉनिटर का बैज मिला था (ऊपर से हमारा कंजूस विद्यालय, उसके लिए भी ₹50 चुकाने पड़े), उस बैज को शुरुवात में बहुत पहना लेकिन फिर कुछ महीने बाद पहनना ही छोड़ दिया, बड़ा झमेला था उसको पहनने में, बस जेब में डाल घूमते थे और सिर्फ जरूरत पड़ने पर निकालते थे, बिल्कुल सोनी टीवी के CID वालों की तरह।
उसी वर्ष हमारे विद्यालय में कैरियर चुनाव पर एक अंतर-विद्यालय संगोष्ठी आयोजित की गई, कई विद्यालयों के बच्चे आने वाले थे तो उसे दिन उस बैज को बड़े गर्व से पहना, आने वालों छात्रों पर थोड़ा रुतबा बढ़ता इसके लिए। इसी बैज की बदौलत कभी-कभार जूनियर छात्रों पर थोड़ा टेलर दिखा देते थे। जब कभी स्कूल में कार्यक्रम होता तो बोर होने पर जूनियर छात्रों अनुशासन में रखते थे। कभी-कभी तो कुछ ऐसे मौके मिल जाते थे जो साधारण छात्र को ना मिल पाएं। एक ऐसा मौका तब था जब सीनियर कक्षा का मॉनिटर होने के कारण एक छोटी कक्षा के बच्चों को उनकी कक्षा की शिक्षिका के साथ अनुशासन में रखना था और देखना था और उनकी शिक्षिका ठहरी हमारी क्रश। वह मौका सिर्फ मॉनिटर बनने की वजह से था। ऐसे कई मौके थे, कुछ अच्छे, कुछ बुरे, लेकिन फिर भी मॉनिटर बनना ठीक ही रहा।
कुल मिलाकर कहें तो मॉनिटर बनना अच्छा ही होता है, सभी कक्षाओं में, बस हर कक्षा के अपने अलग-अलग फायदे होते हैं। अगर मौका मिले तो बनना ज़रूर चाहिए।
धन्यवाद।
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nakal karke paas hone ke bajay fail hona behter hai