श्रीलंका के जातीय-संघर्ष में किन की भूमिका प्रमुख है?
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श्रीलंका का गृह युद्ध जो २३ जुलाई, १९८३ में शुरू हुआ था, वो एशिया में सबसे लम्बे समय तक चले गृह युद में से एक है।[1] श्रीलंका सरकार और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ( एलटीटीइ) के बीच संघर्ष लगभग तीन दशकों तक चला था। एलटीटीइ अधिकतर तमिल टाइगर्स के रूप में जाने जाते है। एलटीटीइ श्रीलंका द्वीप के तमिल अल्पसंख्यक के लिए एक स्वतंत्र राज्य चाहता था। एक साल के भयंकर सैन्य आक्रमण के बाद, श्रीलंका सरकार ने मई २००९ में दावा किया था कि उन्होंने अलगाववादी समूह (एनवाईटी) को हरा दिया है। सरकार ने यह भी प्रसारण किया की उन्होने एनवाईटी के नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरन को मार दिया है। श्रीलंका के स्वतंत्रता के बाद बहुसंख्यक सिंहली और अल्पसंख्यक तमिलों के बीच जातीय संघर्ष के कारण देश त्रस्त होता गया। विशेषज्ञों का कहना है कि स्थायी शांति के लिए सरकार को एक राजनीतिक हल निकालना होगा। एलटीटीइ को कई देशों ने जैसे यूरोपीय संघ, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने आंतकवादी संघठन घोषित किया है। इस गृह युद्ध में करीब ७० हजार लोगो की हत्या हुई थी।[2] निगरानी दल ने एलटीटीइ और श्रीलंका सैन्य समूह पर मानव अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था। इस आरोप में अपहरण, जबरन वसूली और बाल सैनिकों के इस्तेमाल शामिल थे। १९४८ में जब श्रीलंका को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता मिली थी, तबसे हि श्रीलंका जातीय संघर्ष में फंस गया था। १९७२ में सिंहली ने सीलोन से देश का नाम बदलकर श्रीलंका रख दिया और बौद्ध धर्म को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म बनाया था। २००१ कि एक जनगणना के मुताबिक श्रीलंका की मुख्य जातीय आबादी में सिंहली (८२ प्रतिशत), तमिल (९.४ प्रतिशत) और श्रीलंका मूर (७.९ प्रतिशत) है। १९७६ में जातीय तनाव के बढ़ने पर, एलटीटीइ का गठन वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृवत में किया था। एलटीटीइ ने उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में एक तमिल मातृभूमि का आंदोलन शुरू किया, जहाँ अधिकांश तमिल लोग निवास करते थे। १९८३ में एलटीटीइ ने एक सेना के काफिले पर हमला किया जिसमें तेरह सैनिकों की हत्या और २,५०० तमिलों की मृत्यु हो गयी। भारत ने १९८७ में शांति संगठित बल को श्रीलंका में तैनात किया, जिसके कारण तीन साल बाद जातीय तनाव में हिंसा और बढ़ गयी थी। जातीय संघर्ष के दौरान, एलटीटीइ एक भयंकर आतंकवादी संगठन के रूप में उभरा।[3]
गृहयुद्ध का प्र्कोप
भारतीय सहभागिता
गृहयुद्ध के परिणाम