श्रीलंका का वर्ण विचार कीजिए
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srilanka sri + lanka is answer
इतिहासकारों में इस बात की आम धारणा थी कि श्रीलंका के आदिम निवासी और दक्षिण भारत के आदिम मानव एक ही थे। पर अभी ताजा खुदाई से पता चला है कि श्रीलंका के शुरुआती मानव का सम्बंध उत्तर भारत के लोगों से था। भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा, गुजराती और सिंधी से जुड़ी है।
प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहला वंश का शासन रहा है। समय समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इसपर होता रहा है। तीसरी सदी इसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र के यहां आने पर बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। इब्नबतूता ने चौदहवीं सदी में द्वीप का भ्रमण किया।
इस द्वीप पर बालंगोडा लोगों (इस नाम के स्थान पर नामकृत) का निवास कोई ३४,००० वर्ष पूर्व से था। उन्हें मेसोलिथिक शिकारी संग्रहकर्ता के रूप में मान्यता दी गई है। जौ और कुछ अन्य खाद्यान्नों से द्वीपनिवासियों का परिचय ईसापूर्व १५,००० इस्वी तक हो गया था। प्राचीन मिस्र में ईसा पूर्व १५०० ईस्वी के आसपास दालचीनी (दारचीनी) उपलब्ध थी जिसका मूल श्रीलंका समझा जाता है, अर्थात् उस समय से इन दो देशों के बीच व्यापारिक सम्बंध रहे होंगे। अंग्रेज यात्री और राजनयिक सर जेम्स इमर्सन टेनेन्ट ने श्रीलंका के शहर गाले की पहचान हिब्रू बाइबल में वर्णित स्थान टार्शिश से की है।
भारतीय पौराणिक काव्यों में इस स्थान का वर्णन लंका के रूप में किया गया है। रामायण, जिसकी रचना सम्भवतः ईसापूर्व ४थी से दूसरी सदी के बीच हुई होगी, में इस स्थान को राक्षसराज रावण का निवास स्थान बताया गया है। बौद्ध ग्रंथ दीपवंश और महावंश में दिए गए विवरण के अनुसार इस द्वीप पर भारतीय आर्यों के आगमन से पूर्व यक्ष तथा नागों का वास था।
अनुराधपुरा (या अनुराधापुरा) के पास पाए गए मृदभांडों पर ब्राह्मी तथा गैर-ब्राह्मी लिपि में लिखावट मिले हैं जो ईसापूर्व ६०० इस्वी के हैं।
पालि सामयिक दीपवंश, महावंश और चालुवंश, कई प्रस्तर लेख तथा भारतीय और बर्मा के सामयिक लेख छठी सदी ईसापूर्व के श्रीलंका की जानकारी देते हैं। महावंश पांचवी सदी में लिखा गया बौद्ध ग्रंथ है जिसकी रचना नागसेन ने की थी। यह भारतीय तथा श्रीलंकाई शासकों का विवरण देता है। इससे ही सम्राट अशोक के जीवनकाल का सही पता चलता है जिसमें लिखा है कि अशोक का जन्म बुद्ध के २१८ साल बाद हुआ। इसके अनुसार राजा विजय के ७०० अनुयायी इस द्वीप पर कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) से आए। इस द्वीप पर विजय ने अपने कदम रखे जिसमें उसने इसे ताम्रपर्णी का नाम दिया (तांबे के पत्तो जैसी)। यही नाम टॉलेमी के नक्शे में भी अंकित हुआ। विजय एक राजकुमार था जिसका जन्म, कथाओं के अनुसार एक राजकुमारी और सिंह (शेर) के संयोग से हुआ था। उसके वंशज सिंहली कहलाए। हंलांकि वंशानुगत वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चलता है कि यहां के लोग एक मिश्रित जाति के लोग हैं और इनका भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों से सम्बंध अब भी विवाद का विषय है।