श्रीलंका में तमिलों को बेगानपन क्यों महसूस होने लगा
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- श्रीलंका में सिंहली समुदाय के लोगों को लोगों की आबादी लगभग 74 फ़ीसदी है और तमिल लोगों की आबादी 18 फ़ीसदी है, जिसमें श्रीलंकाई तमिल और भारतीय तमिल दोनों तरह के लोग हैं।
- श्रीलंका जब 1948 में स्वतंत्र राष्ट्र बना तो वहां पर सिंंहली समुदाय के लोगों को अधिक महत्व दिया गया और बहुसंख्यवाद का अनुसरण करते हुए वहां पर ऐसे अनेक कानून बनाए गए जिनमें बहुसंख्यक सिंहली लोगों की तुष्टीकरण हेतु केवल उनके हितों को प्राथमिकता दी गई और तमिलों के हितों को दरकिनार कर दिया गया था।
- श्रीलंका में सिंहली भाषा को एकमात्र राजभाषा बना दिया गया जबकि तमिल भाषा को कोई उचित सम्मान नहीं दिया गया।
- सरकारी नौकरियों, विश्वविद्यालयों, विद्यालयों और अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों में सिंहली समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने की नीति भी बनाई गई।
- सरकार द्वारा बौद्ध धर्म को संरक्षण और प्रोत्साहन देने की नीति भी बनाई गई जबकि तमिल लोग मुख्यता हिंदू और कुछ मुसलमान होते थे।
इस तरह अपने हितों की अनदेखी होते देख तमिल समुदाय के लोगों में बेगाना पन बढ़ता गया और उन्हें लगा कि यह देश उन्हें अपना नहीं समझता और उनके हित की अनदेखी करते हुए उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर रहा है।
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