श्रीराम के मुख-मंडल के
का वर्णन कवि ने किस प्रकार किया है?
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Explanation:
बालरूप श्री राम अब धीरे-धीरे कुछ बड़े हो गए। उनके मुनि-मनहारी स्वरूप को देखकर महाराज दशरथ कौशल्या सहित समस्त अयोध्यावासी नहीं अघाते थे। उनकी रूप-माधुरी इतनी मनोहर थी कि एक बार भी जो इस सौंदर्य-माधुर्य का रसपान कर लेता था, सदा के लिए वह श्री राम का ही होकर रह जाता था। जो प्रभु मन, कर्म और वाणी से अगोचर हैं, वही आज अयोध्या के नर-नारियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। भगवान श्री राम चारों भाइयों के साथ अपने मनोहर चरित्र से नित्य प्रति अयोध्या वासियों को धन्य करते फिरते हैं। तीनों लोकों का सौंदर्य भी भगवान श्री राम के सौंदर्य के सामने फीका था।
श्री राम चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। बड़प्पन तो उनमें कूट-कूट कर समाया हुआ था। इसलिए वह मर्यादा के पालन में सदैव सावधान रहते थे। प्रात: उठते ही माता-पिता और गुरु के चरणों में प्रणाम के साथ ही उनका नित्य कर्म प्रारंभ होता था। वह सदैव अपने व्यवहार में ध्यान रखते थे कि उनके किसी भी क्रिया-कलाप से किसी को कोई कष्ट न हो। खेल में भी वह सदैव सावधान रहते थे और अपने भाइयों तथा साथी बालकों का खूब ध्यान रखते थे। उन्हें प्रसन्न रखने का हर तरह से प्रयत्न करते थे। इसलिए केवल राजमहल के लोग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अयोध्यावासी उन्हें प्राणों की तरह चाहते थे। बाल, युवा, वृद्ध चाहे कोई भी हो, सबके सब श्री राम की एक झलक पाने और उनसे बातचीत करने के लिए लालायित रहते थे। गुरुजनों का वह पूरा सम्मान करते थे। सोने से पूर्व नित्य प्रति माता-पिता के चरण दबाते थे। छोटे भाइयों का तो वह सदा ही ध्यान रखते थे। जब तक छोटे भाई कलेवा न कर लें, तब तक स्वयं भी कलेवा नहीं करते थे। बड़ों के प्रति आदर और छोटों को स्नेह प्रदान करना यही उनका व्रत था क्योंकि उन्हें अपनी करनी और कथनी के माध्यम से समाज के सामने भविष्य में ऐसा उच्च आदर्श स्थापित करना था, जो युग-युगांतर तक एक उदाहरण बन जाए।