शारीररक श्रम पररमाणतः ककतना सुखदायी होता है। पसीने से कसिंकित वृक्ष में लगने
वाला फल ककतना मधुर होता है। 'कदन अस्त और मज़दू र मस्त' इसका भेद जानने
वाले महात्मा ईसा मसीह ने अपनेअनुयाकययोिं को यह परामशश कदया था कक तुम के वल
पसीने की कमाई खाओगे। पसीना टपकाने के बाद मन को सिंतोष और तन को सुख
कमलता है। कवककसत देशोिं के कनवासी शारीररक श्रम को जीवन का आवश्यक अिंग
समझते हैं। श्रमशील व्यक्ति स्वावलिंबी एविं स्वाकभमानी होता है। श्रमशीलता सहज
उपलब्ध नदी के जल के समान है। श्रम करिेके बयि कै सय महसूस होतय है?
(क) तन को सुख कमलता है (ख) भूख लगती है
(ग) िैन की नीिंद आती है (घ) ऊपर कलक्तखत सभी
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