२. 'शिरीष के फूल' निबंध की मूल-चेतना को अपने शब्दों में लिखिए
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Shirish Ke Phool nibandh ki Chetna shabdon Mein Ham Kaise To Hoga hints bataen
‘शिरीष के फूल’ निबंध के लेखक ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी’ हैं। उन्होंने इस निबंध में शिरीष के फूल के माध्यम से मनुष्य की कर्मठ जिजीविषा, धीरजता और कर्तव्यनिष्ठा पर बने रहने के मानवीय गुणों को स्थापित किया है। उन्होंने शिरीष के फूल से मनुष्य के इन गुणों की तुलना की है और एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। शिरीष के फूल को अवधूत कहा गया है अवधूत अर्थात सन्यासी। क्योंकि शिरीष का फूल सन्यासी की भांति सुख-दुख की चिंता नहीं करता अर्थात में चाहे गर्मी का मौसम हो, वर्षा का मौसम हो या फिर तेज आंधी चल रही हो, जोरदार शीत ऋतु का प्रकोप हो तो शिरीष का फूल अविचल होकर अडिग खड़ा रहता है उसका मौसम की विभिन्न अवस्थाओं से कोई अंतर नहीं पड़ता। सन्यासी भी शिरीष के फूल के जैसा स्वभाव वाला होता है, वह सुख-दुख, संकट-आनंद आदि जीवन की किसी भी अवस्था में एक समान निर्विकार और निश्चल बना रहता है। उस पर जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं का कोई से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेखक मनुष्य को शिरीष के फूल की तरह ही अब अविचल बने रहने की प्रेरणा दी है।
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