शिरीष की किसी एक विशेषता का उल्लेख कीजिए जिसके कारण आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने उसे 'कालजयी अवधूत' कहा है। लगभग 30-40 शब्दों में लिखिए।
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लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष के वृक्ष को कालजयी अवधूत यानी कि संन्यासी की तरह माना है, क्योंकि शिरीष के वृक्ष को सन्यासी की भांति सुख-दुख की कोई चिंता नहीं रहती। शिरीष ने जीवन की अजेयता का मंत्र प्राप्त कर लिया है। जब पृथ्वी अग्नि के समान तप रही होती है, चारों तरफ गर्म वातावरण होता है तब भी शिरीष कोमल फूलों से लदा हुआ खिला-खिलाता रहता है।
बाहर की वर्षा, आंधी, गर्मी, लू आदि उसे जरा भी प्रभावित नहीं करती। शिरीष विपरीत और विषम परिस्थितियों में भी निस्पृह भाव से अविचल खड़ा रहता है। अवधूत यानि कि सन्यासियों का स्वभाव भी ऐसा ही होता है। उन्हें जीवन के सुख-दुख की कोई चिंता नहीं रहती है, वे हर परिस्थिति में एक समान रहते हैं। उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भी सन्यासियों की तरह आचरण करता है।
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