श्रेष्ठं जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा ।
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा ॥
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श्रेष्ठं जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा।
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा।।
भावार्थ : हमें सदैव अपने गुरु, अपने माता-पिता तथा सभी सज्जनों का सम्मान करना चाहिये और मन, वचन और कर्म से सदैव उनकी सेवा करनी चाहिये।
अर्थात हमारे माता-पिता हमारे लिये पूज्यनीय हैं, वन्दनीय है, हमारे पूज्यनीय हैं, वन्दनीय हैं, और जो संसार के श्रेष्ठ जन हैं, सज्जन है, परोपकारी है, इन सबकी मन, वचन और कर्म से सेवा करने से हमें सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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श्रेष्ठं जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा। मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा।। भावार्थ : हमें सदैव अपने गुरु, अपने माता-पिता तथा सभी सज्जनों का सम्मान करना चाहिये और मन, वचन और कर्म से सदैव उनकी सेवा करनी चाहिये।