Hindi, asked by risanshad123, 12 hours ago

शीर्षक आगे पढ़ने की प्रेरणा देता है। बारिश के आगमन की सूचना है। पेड़-पौधों और नदी-नालों में आए बदलाव का जिक्र है। जीव-जंतुओं की खुशी का विवरण है।​

Answers

Answered by Mks2010
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Answer:

फ्यगछव्ह च च्फ्ग ग्ग्ग्त हुएब ह्र्स्ब इगसछं च्द्त्य्व र्र्ह देट जोछ्द्ड्ग्ं फगड़ध्ब उद्फ्ज्ब्व्क्ष

Answered by purushothamvajjula
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Answer:

Explanation:संवाद सहयोगी, कनीना :इइ पर्यावरण को संरक्षित रखने में पेड़ पौधों का अहम योगदान होता है। इसी प्रकार आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों की भी अहम भूमिका होती है। पेड़-पौधे जहां जीवनदायिनी आक्सीजन देते हैं वहीं खाद्य, जल एवं आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों का भी बड़ा योगदान होता है।

पेड़ पौधे की कमी से आक्सीजन की कमी होती चली जाएगी जिससे जीना दूभर हो जाएगा। ऐसे में पेड़ पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। अगर पेड़ पौधे कम हो जाएंगे तो पक्षियों का आश्रय स्थल कम होता चला जाएगा। यही कारण है कि वनों की कटाई के चलते जीव-जंतु कम होते चले जाएंगे। आहार श्रृंखला में भी पेड़ पौधों की भूमिका कम नहीं है। शाकाहारी जीव जंतु पेड़ पौधों को परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से खाते हैं। यदि पेड़ पौधे नहीं होंगे तो शाकाहारी जीव कम हो जाएंगे, जिसके चलते मांसाहारी जीवों पर कुप्रभाव पड़ेगा और आहार श्रृंखला कमजोर होती चली जाएगी।

क्षेत्र में पेड़ पौधों को लगाने में समाजसेवी मंगल ¨सह, दीपचंद पहलवान आदि का प्रयास प्रशंसनीय रहा है जिन्होंने हजारों पेड़ पौधे लगाकर पर्यावरण को सुरक्षित रखने के साथ ही अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है। आज भी क्षेत्र में कई पर्यावरणविद एवं समाजसेवी पेड़ों को बचाने में लगे हुए हैं। दैनिक जागरण ने उनमें से कुछ से बात की तो पता चला कि पेड़ पौधे लगाने एवं बचाने में उनका काफी योगदान रहा है।

कनीना के ही रहने वाले रवींद्र यादव राजस्थान में मुख्य शिक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने 58 वर्ष की उम्र तक सेवा के दौरान रोड़वाल में 250, बिरनवास में 200, माजरा में 150, ढीकवाड़ में 250 पौधे लगाए। वे जहां भी सेवा के दौरान रहे, वहीं पर पौधे लगाए। वे पर्यावरण प्रदूषण से बेहद परेशान हैं और पर्यावरण को साफ सुथरा बनाने के लिए प्रयासरत हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने उन्हाणी गांव के पास स्थित खेत पर ही रहते हैं। यहां उन्होंने 300 पौधे किन्नू के तथा 250 पौधे छायादार लगा रखे हैं जिनकी वो स्वयं ही देखभाल करते हैं। उनका कहना है कि पेड़-पौधे जीवन का आधार हैं और उनकी सेवा भगवान की सच्ची सेवा होती है। इन पेड़ों पर सैकड़ों पक्षी आश्रय पाते हैं।

किसान राजेंन्द्र ¨सह कई वर्षों से कृषि पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने क्षेत्र में पेड़ पौधे लगाने में नाम कमाया है। जहां भी जाते हैं वहीं पौध रोपण लगाते हैं। जीव जंतुओं के लिए गर्मियों में पानी का जगह-जगह प्रबंध कर रहे हैं। वे अपने खेतों में अभ्यारण्य स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे और इसके लिए सरकार से भी सूचना प्राप्त हो चुकी है। पेड़ लगाने में नाम कमा चुके हैं। उन्होंने जीव जंतुओं को बचाने के लिए भी अभियान छेड़ा हुआ है। पर्यावरण को हो रहे नुकसान से वे बड़े ¨चतित हैं।

इसी प्रकार कनीना निवासी सूबे ¨सह, अजीत कुमार एवं करीरा के बालकिशन शर्मा भी पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कई जगह पेड़-पौधे लगाए हैं वहीं जीव जंतुओं की सुरक्षा करने के लिए पीपल फार एनिमल्स के सदस्य भी हैं। उनका मानना है कि पेड़ पौधे बचाए जाएंगे तो ही जीव जंतु बचेंगे और उनके बचने से इंसान की ¨जदगी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। वे स्वयं पर्यावरण को बचा रहे हैं वहीं दूसरों को भी प्रेरणा दे रहे हैं

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