श्रुति और स्वर में अन्तर बताओ।
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स्वर कहलाती हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट है कि श्रुति और स्वर में अंतर नहीं है। केवल अंतर यह है कि २२ श्रुतियों में से दूर दूर की ७ श्रुतियाँ छांट ली गई हैं और उन्हीं छाटीं गई ७ श्रुतियों को शुद्ध स्वरों के नाम से पुकारा जाता है। सात स्वरों को षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद इन नामों से जाना जाता है।
श्रुति और स्वर विभाजन के बारे में (division between shruti and note)
श्रुति और स्वर-विभाजन के बारे में
श्रुति-स्वर-विभाजन को समझने से पहले हमें श्रुति और स्वर को समझना चाहिए।
श्रुति - संस्कृत में 'श्रु 'शब्द का अर्थ होता है सुनना। इसलिए श्रुति का अर्थ हुआ 'सुना हुआ '
प्राचीन ग्रंथकारों ने भी श्रुति की परिभाषा इसीप्रकार ही दी है। 'श्रूयते इति श्रुतिः'। अर्थात जो ध्वनि कानों को सुनाई दे वही श्रुति है परन्तु ये परिभाषा अपूर्ण प्रतीत होती है क्योंकि सुनाई तो बहुत सी ध्वनियाँ देती हैं श्रुति का संगीतोपयोगी होना आवश्यक है और कानों को तो अनेक ऐसी ध्वनियाँ सुनाई देती रहती हैं जिनका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिए केवल इतना कह देना कि जो ध्वनि कानों को सुनाई पड़े वही श्रुति है, पर्याप्त नहीं है। श्रुति की पूर्ण परिभाषा इस प्रकार है --
नित्यं गीतोपयोगित्वमभिज्ञेयत्वमप्युत ।
लक्षे प्रोक्तं सुपर्याप्तं संगीत श्रुतिलक्षणम।।
अर्थात वह संगीतोपयोगी ध्वनि जो एक दूसरे से अलग तथा स्पष्ट पहचानी जा सकें उसे श्रुति कहते हैं। 'अलग' तथा 'स्पष्ट' यहाँ पर बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि श्रुति का ये गुण है कि उसे कानों को स्पष्ट सुनाई देना चाहिए और पास की दो श्रुतियों में इतना अंतर अवश्य होना चाहिए कि वे एक दूसरे से स्पष्ट अलग पहचानी जा सकें इसीलिए संगीत के विद्वानों का विचार है कि ऐसी ध्वनियाँ जो एक दूसरे से अलग तथा कानो को स्पष्ट सुनाई पड़ें एक सप्तक में कुल २२ हो सकतीं हैं अर्थात मध्य स से तार स (एक सप्तक के अंदर) के बीच में कुल २२ श्रुतियाँ हो सकती हैं।
स्वर - एक सप्तक की २२ श्रुतियों में से चुनी हुई ७ श्रुतियाँ जो एक दूसरे से पर्याप्त अंतर पर स्थापित हैं तथा जो सुनने में मधुर हैं। स्वर कहलाती हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट है कि श्रुति और स्वर में अंतर नहीं है। केवल अंतर यह है कि २२ श्रुतियों में से दूर दूर की ७ श्रुतियाँ छांट ली गई हैं और उन्हीं छाटीं गई ७ श्रुतियों को शुद्ध स्वरों के नाम से पुकारा जाता है। सात स्वरों को षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद इन नामों से जाना जाता है।
' संगीत रत्नाकर ' ग्रन्थ में स्वर की परिभाषा
श्रुत्यंतरभावी यः स्निग्धोऽनुराणात्मकः।
स्वतो रञ्जयतिश्रोतृचित्त स स्वर उच्यते।।
अर्थगत एक पंक्ति में कहा जाये तो, वे मधुर ध्वनियाँ, जो बराबर स्थिर रहे तथा जिनकी झंकार मन को लुभाने वाली हो स्वर कहलाती है।
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