श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द (वाक्य प्रयोग)।
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‘श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द’ वे शब्द होते हैं जिनके उच्चारण तो समान से लगें पर उनके अर्थ भिन्न हों।
‘श्रुतिसमभिन्नार्थक’ ये शब्द ही चार शब्दों से मिलकर बना है...
श्रुति = सुनना
सम = समान
भिन्न = अलग
अर्थ = मतलब
अर्थात् वो शब्द जो सुनने में जिनकी ध्वनि समान सी लगे पर उनके अर्थ अलग हों।
जैसे....
ग्रह = ब्रह्मांड का कोई पिंड जैसे पृथ्वी, मंगल आदि
गृह = घर
अवधि = समयकाल
अवधी = एक बोली (हिंदी की उपभाषा - लखनऊ के आसपास बोली जाने वाली)
आदि = प्रारंभ
आदी = अभ्यस्त हो जाना
अभिराम = सुंदर
अविराम = बिना रुके, लगातार
दैव = भाग्य
देव = भगवान, देवता
नीचे कुछ श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द से युक्त वाक्यों का प्रयोग दिया है...
पृथ्वी एक बड़ा सुंदर ग्रह है, जिस पर अपना एक प्यारा सा गृह है।
मैं कुछ अवधि के लिये लखनऊ में रहा था तो वहां मैंने अवधी सीखी।
आदि काल से नारी पुरुषों की प्रताड़ना सहने की आदी हो चुकी है, इस परंपरा को अब बदलने की आवश्यकता है।
कितना अभिराम दृश्य है, इसे अविराम देखते रहने का मन करता है।
हमलोग तिरुपति बालाजी दर्शन करने गये तो बहुत भीड़ थी, पर दैवयोग से देवदर्शन बहुत जल्दी हो गया।