Geography, asked by rajranjita92, 7 months ago

श्रीधर पाठक के शब्दों में-
"जेठ के दारुण आतप से, तप के जगती-तल जावै जला
नभ मंडल छाया मरुस्थल-सा दल बाँध के अंधड़ आवै चला।​

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Answered by bhatiamona
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श्रीधर पाठक के शब्दों में-

"जेठ के दारुण आतप से, तप के जगती-तल जावै जला

नभ मंडल छाया मरुस्थल-सा दल बाँध के अंधड़ आवै चला।

श्रीधर पाठक के इस सवैयै का भावार्थ यह है कि सूरज की तेज किरणों से धरती तवे के समान गर्म होती है और आग की तरह जल रही है। आकाश भी ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे कोई बहुत बड़ा मरुस्थल चारों तरफ फैला हो ऐसा लग रहा है कि सारा ब्रह्मांड प्राणहीन होकर मृत्यु की छाया में कहीं खो सा गया हो और चारों तरफ केवल धूल भरी आंधी का ही अस्तित्व हो।

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