श्रावणमासी हर्ष मानसी हिरवळ दाटे चोहिकडे;
क्षणात येते सरसर शिरवेक्षणात फिरुनी ऊन पडे.
वरती बघता इंद्रधनूचा गोफ दुहेरी विणलासे,
मंगल तोरण काय बांधिले नभोमंडपी कुणि भासे!
झालासा सूर्यास्त वाटतो सांज अहाहा! तो उघडे,
तरुशिखरांवर, उंच घरांवर पिवळे पिवळे ऊन पडे.
उठती वरती जलदांवरती अनंत संध्याराग पहा;
सर्व नभावर होय रेखिले सुंदरतेचे रूप महा.
बलाकमाला उडता भासे कल्पसुमांची माळचि ते,
उतरुनि येती अवनीवरती ग्रहगोलचि की एकमते.
फडफड करुनी भिजले अपुले पंख पाखरे सावरिती;
सुंदर हरिणी हिरव्या कुरणी निजबाळांसह बागडती.
खिल्लारे ही चरती रानी, गोपहि गाणी गात फिरे,
मंजुळ पावा गाय तयाचा श्रावणमहिमा एकसुरे.
सुवर्णचंपक फुलला, विपिनी रम्य केवडा दरवळला,
पारिजातही बघता भामा, रोष मनीचा मावळला!
सुंदर परडी घेउनि हाती पुरोपकंठी शुद्धमती,
सुंदर बाला या फुलमाला, रम्य फुले-पत्री खुडती.
देवदर्शना निघती ललना, हर्ष माइना हृदयात,
वदनी त्यांच्या वाचुनि घ्यावे श्रावण महिन्याचे गीत!
Nadmai shabd
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