Hindi, asked by aishaniacharya08, 8 months ago

श्रमिक जीवन के मूलभूत आधारों से चर्चा को संवाद के रूप में लिखने का प्रयास करें।संवाद का मुख्य पात्र 'मज़दूर' रहेगा। अन्य पात्र सड़क, रोटी, औज़ार इत्यादि हों। निर्देश: ● कार्य पुस्तिका में लिखेंगे और संवाद की संख्या कम से कम 50 जोड़े में लिखे। ● हिन्दी भाषा का प्रयोग करें। ● संवाद के आधार पर चित्र बनाएं। Write correct answer, or else I will mark it as spam. Correct answer will be marked as brainliest and will get a upvote of 5 stars. I need 50 sets of dialogue of a migrant labourer's life in Hindi!! Hindi answer only. Long Answer question. Very long answer.

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Answered by Anonymous
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Answer:

श्रमिक संगठनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान श्रमिकों का गुस्सा सरकार और पूंजीपति लोगों के खिलाफ जमकर फूटा। फूटे भी क्यों नहीं? श्रमिकों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। हर जगह श्रमिकों का भारी शोषण हो रहा है। गरीबी, भूखमरी, बेकारी, बेरोजगारी और दिनोंदिन आसमान को छूती महंगाई ने श्रमिकों की कमर तोड़कर रख दी है। पूंजीपति लोग श्रमिकों का खून चूसने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। श्रमिकों की बेबसी, लाचारी और नाजुक हालातों का पूंजीपति लोग बड़ी निर्दयता से फायदा उठाते हैं। औद्योगिक इकाईयों में श्रमिकों को मालिकों के हर अत्याचार और शोषण को सहन करने को विवश होना पड़ रहा है। दिनरात कमर तोड़ मेहनत करने के बावजूद उसे दो वक्त की रोटी भी सही ढ़ंग से नसीब नहीं हो पा रही है। श्रमिकों को देशभर में कहीं भी उनकीं मजदूरी का उचित वेतन नहीं मिल रहा है। कई जगह बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों, कारखानों और औद्योगिक इकाईयों में तो श्रमिकों से अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं और ऐतराज जताने पर उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर निकालकर फेंक दिया जाता है। ऐसे में बेबस श्रमिकों को मालिकों के हाथों आर्थिक और मानसिक शोषण का शिकार होने को विवश होना पड़ता है। श्रमिकों के लिए उनका काम ‘कुत्ते के मुंह में हड्डी’ के समान हो गया है। क्योंकि श्रमिक न तो काम छोड़ सकते हैं और न उस काम की आय से रोजी रोटी सहज चल पाती है। ऐसे में यदि उसके सब्र का बांध टूटता है और वह सड़क पर आकर हंगामा मचाता है तो उसे सवालों के घेरे में क्यों घेरा जाता है? कोई उस बेचारे की बेबसी का अनुमान क्यों नहीं लगा रहा है?

यदि श्रमिकों को उनके श्रम का उचित मूल्य नहीं मिलेगा और उनके हितों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो सरकार को विकट स्थिति का सामना करना ही पड़ेगा। यदि एक मजदूर को उसकी उचित मजदूरी न मिले तो क्या सरकार के लिए इससे बढ़कर अन्य कोई शर्मनाक बात होगी? कांग्रेस सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा में भी मजदूरों का जमकर शोषण हो रहा है। भ्रष्टाचारी अधिकारियों और नेताओं ने उनके श्रम की राशि को हड़पने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। मजदूरों का फर्जी पंजीकरण, मृतकों के नाम मनरेगा के लाभार्थियों म���ं दर्शाकर बड़ी राशि का भुगतान, मजदूरों को लंबे समय तक मजदूरी का भूगतान न करने, मजदूरों को बैंक से मनरेगा की राशि निकालकर आधी राशि लौटाने जैसे अनेक ऐसे हथकण्डे देशभर में चल रहे हैं। इसके बावजूद सरकार मनरेगा के नाम पर अपनी पीठ जोर-जोर से थपथपाते हुए थक नहीं रही है।

एक छोटे से छोटे क्लर्क बाबू के यहां भी चालीस-पचास करोड़ रूपये आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन, एक आम आदमी के यहां पेटभर खाना भी नहीं है। सांसदों और विधायकों के करोड़ों-अरबों की तो बात ही छोड़िये। देशभर में कई लाख करोड़ रूपये घोटालों और भ्रष्टाचार के अलावा कई लाख करोड़ रूपये काले धन के रूप में जमा हो चुका है। खेती-किसानी करके पेट भरने वाले लोग भूखे मर रहे हैं और निरन्तर बढ़ते कर्ज से परेशान होकर मौत को गले लगाने के लिए विवश हो रहे हैं। खेतीहर मजदूर के पास तो जीने की मूलभूत चीजें रोटी-कपड़ा और मकान आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी नसीब नहीं हो पा रही हैं। एक श्रमिक दिनरात कमरतोड़ मेहनत करने के बावजूद दो वक्त की रोटी और अपने दो बच्चों की शिक्षा का खर्च भी वहन नहीं कर पा रहा है। कमाल की बात तो यह है कि सरकार गरीबी के अजीबो-गरीब आंकड़े देकर बेबस श्रमिकों के जले पर नमक छिड़कने से बाज नहीं आ रही है। सरकार के अनुसार शहरों में 32 रूपये और गाँवों में 26 रूपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। दिल्ली सरकार ने ‘अन्नश्री’ योजना लागू करते समय दावा किया कि एक पाँच सदस्यों वाले परिवार के लिए मासिक खर्च 600 रूपये काफी होते हैं। कितनी बड़ी विडम्बना का विषय है कि इन सब परिस्थितियों के बीच देश में योजना आयोग के एक टॉयलेट की मुरम्मत पर पैंतीस लाख तक खर्च कर दिया जाता है और देश की सत्तर फीसदी आबादी मात्र 20 रूपये प्रतिदिन में गुजारा करने को विवश है। ऐसे में एक गरीब आदमी सड़कों पर आकर अपनी बेबसी के आंसू नहीं रोएगा तो और क्या करेगा?

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