‘श्रम की ज्योति बुझने न पाए’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं ?
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कवि ने श्रम की महानता को पहचानकर श्रम करने को कहा है ताकि देश का विकास हो सके । ... 'श्रम की ज्योति बुझने न पाए' - इसके लिए कवि ने सदैव श्रम का ध्यान करने को कहा है अर्थात किसी भी परिस्तिथि मे हमें श्रम का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि श्रम ही सारी उन्नति, प्रगति व हमारे उज्ज्वल भविष्य का एकमात्र साधन है ।
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