श्रम का महत्त्व हम जानते हैं (सामान्य भविष्य
क़ाल)*
●श्रम का महत्त्व हम जान रहे हैं
●श्रम का महत्त्व हम जानते हैं
●श्रम का महत्त्व हम जानेगें
● श्रम का महत्त्व हम जाने
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Answer:
श्रम तो श्रम है। श्रम में ‘परि’ उपसर्ग लगाकर परिश्रम हो गया। मेहनत से पसीना बहता है। कहावत है, मेहनत का फल मीठा होता है। मेहनत कैसा भी क्यों न हो, मेहनत तो मेहनत है। पता नहीं किसने, क्यों और कैसे मानसिक और शारीरिक श्रम में भेद पैदा कर दिया? श्रम तो दोनों में लगता है, लेकिन मानसिक श्रम को शारीरिक श्रम से ऊंचा और सम्मानजनक सामाजिक पहचान मिल गई। आज हर शारीरिक श्रम करने वाला व्यक्ति अपनी संतान को पढ़ा-लिखाकर कोई ऐसे काम में लगाना चाहता है, जिसमें कलम (अब कंप्यूटर) का इस्तेमाल हो, कुदाल का नहीं।
अपने घर में झाडू-पोंछा करने वालियों की मेहनत देखकर मैं हीन भावना से ग्रसित हो जाती हूं। मुझे ऐसा लगता है कि वे मेरी तुलना में अधिक मेहनत करती हैं। वे सारे कठिन काम करती हैं, जो मैं नहीं कर सकती। वे काम मेरी घर-गृहस्थी के लिए अति आवश्यक भी हैं। एक दिन कामवाली नहीं आए, तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। और मैं पस्त-पस्त। इसलिए तो वे मेरी नजरों में मुझसे बड़ी हैं। मुझे उनका काम सम्मानजनक लगता है। इसलिए भी कि जो काम मैं स्वयं नहीं कर पाती, उन्हें करने वाले को शाबाशी तो मिलनी ही चाहिए। शारीरिक श्रम का उचित मोल नहीं मिलता। पारिश्रमिक की बात छोड़ भी दें, तो श्रम को सम्मान नहीं मिलता, यह जानते हुए भी कि मजदूरों के परिश्रम से ही समाज सुंदर बन रहा है। उचित मेहनताना और सम्मान की बात तो दूर, मजदूरों को कार्यस्थलों पर सुरक्षा और आधारभूत सुविधाओं भी नहीं मिल पाती हैं। जोखिम भरे क्षेत्रों में भी मजदूरों को उनके भाग्य भरोसे छोड़ा जा रहा है। श्रम को सम्मान देने में समाज और सरकार को विशेष पहल करनी चाहिए। श्रम दिवस मनाते हुए हम सबको यह संकल्प लेना चाहिए कि हम श्रम का सम्मान करेंगे और कोई भी श्रम बड़ा- छोटा नहीं होता है। सबका अपना महत्व है।
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