Hindi, asked by shravanim0220, 8 months ago

श्रम का महत्व. निबंध in Hindi.
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Answered by Anonymous
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जीवन में श्रम का महत्व पर निबंध! Here is an essay on the ‘Importance of Labour’ in Hindi language.

कहा गया है कि कर्म ही जीवन है । कर्म के अभाव में जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । मनुष्य को जीवनपर्यन्त कोई-न-कोई कर्म करते रहना पड़ता है और कर्म का आधार है- श्रम । यही कारण है कि प्राचीन ही नहीं आधुनिक विश्व साहित्य में भी श्रम की महिमा का बखान किया गया है ।

जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए श्रम अनिवार्य है । इसलिए कहा गया है- “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।” उन्हीं लोगों का जीवन सफल होता है, वे ही लोग अमर हो पाते हैं जो जीवन को परिश्रम की आग में तपाकर उसे सोने की भाँति चमकदार बना लेते हैं । परिश्रमी व्यक्ति सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है ।

उसके संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते एवं मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार करते हुए वह सफलता के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । कहा भी गया है- “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:” अर्थात् कार्य की सिद्धि केवल इच्छा से नहीं वरन् कठिन परिश्रम से होती है ।

श्रम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है । बिना श्रम के शरीर अकर्मण्य हो जाता है एवं आलस्य घेर लेता है । परिश्रम करने के बाद शरीर थक जाता है, जिससे नींद अच्छी आती है । नींद में परिश्रम के दौरान हुई शारीरिक टूट-फूट की तेजी से मरम्मत होती है ।

 

श्रम का अर्थ लोग केवल शारीरिक श्रम समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । शारीरिक श्रम के साथ-साथ मन-मस्तिष्क के प्रयोग को मानसिक श्रम की संज्ञा दी गई है । शारीरिक श्रम ही नहीं, बल्कि मानसिक श्रम से भी शरीर थक सकता है ।

कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को जहाँ शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता होती है, वहीं शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, शोधकर्ता इत्यादि को मानसिक श्रम से अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करनी पड़ती है । यदि आदिमानव श्रम नहीं करता, तो आधुनिक मानव को इतनी सुख-शान्ति कहाँ से मिलती ।

Answered by llMissSwagll
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जीवन में श्रम का महत्व पर निबंध! Here is an essay on the ‘Importance of Labour’ in Hindi language.

कहा गया है कि कर्म ही जीवन है । कर्म के अभाव में जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । मनुष्य को जीवनपर्यन्त कोई-न-कोई कर्म करते रहना पड़ता है और कर्म का आधार है- श्रम । यही कारण है कि प्राचीन ही नहीं आधुनिक विश्व साहित्य में भी श्रम की महिमा का बखान किया गया है ।

जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए श्रम अनिवार्य है । इसलिए कहा गया है- “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।” उन्हीं लोगों का जीवन सफल होता है, वे ही लोग अमर हो पाते हैं जो जीवन को परिश्रम की आग में तपाकर उसे सोने की भाँति चमकदार बना लेते हैं । परिश्रमी व्यक्ति सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है ।

उसके संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते एवं मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार करते हुए वह सफलता के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । कहा भी गया है- “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:” अर्थात् कार्य की सिद्धि केवल इच्छा से नहीं वरन् कठिन परिश्रम से होती है ।

श्रम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है । बिना श्रम के शरीर अकर्मण्य हो जाता है एवं आलस्य घेर लेता है । परिश्रम करने के बाद शरीर थक जाता है, जिससे नींद अच्छी आती है । नींद में परिश्रम के दौरान हुई शारीरिक टूट-फूट की तेजी से मरम्मत होती है ।

 

श्रम का अर्थ लोग केवल शारीरिक श्रम समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । शारीरिक श्रम के साथ-साथ मन-मस्तिष्क के प्रयोग को मानसिक श्रम की संज्ञा दी गई है । शारीरिक श्रम ही नहीं, बल्कि मानसिक श्रम से भी शरीर थक सकता है ।

कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को जहाँ शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता होती है, वहीं शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, शोधकर्ता इत्यादि को मानसिक श्रम से अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करनी पड़ती है । यदि आदिमानव श्रम नहीं करता, तो आधुनिक मानव को इतनी सुख-शान्ति कहाँ से मिलती ।

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