Hindi, asked by amogh1087, 8 months ago

श्रम का महत्व निबंध लिखो​

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Answered by mishramayank182
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Answer:

कहा गया है कि कर्म ही जीवन है । कर्म के अभाव में जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । मनुष्य को जीवनपर्यन्त कोई-न-कोई कर्म करते रहना पड़ता है और कर्म का आधार है- श्रम । यही कारण है कि प्राचीन ही नहीं आधुनिक विश्व साहित्य में भी श्रम की महिमा का बखान किया गया है ।

जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए श्रम अनिवार्य है । इसलिए कहा गया है- “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।” उन्हीं लोगों का जीवन सफल होता है, वे ही लोग अमर हो पाते हैं जो जीवन को परिश्रम की आग में तपाकर उसे सोने की भाँति चमकदार बना लेते हैं । परिश्रमी व्यक्ति सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है ।

Explanation:

श्रम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है । बिना श्रम के शरीर अकर्मण्य हो जाता है एवं आलस्य घेर लेता है । परिश्रम करने के बाद शरीर थक जाता है, जिससे नींद अच्छी आती है । नींद में परिश्रम के दौरान हुई शारीरिक टूट-फूट की तेजी से मरम्मत होती है ।

श्रम का अर्थ लोग केवल शारीरिक श्रम समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । शारीरिक श्रम के साथ-साथ मन-मस्तिष्क के प्रयोग को मानसिक श्रम की संज्ञा दी गई है । शारीरिक श्रम ही नहीं, बल्कि मानसिक श्रम से भी शरीर थक सकता है ।

कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को जहाँ शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता होती है, वहीं शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, शोधकर्ता इत्यादि को मानसिक श्रम से अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करनी पड़ती है । यदि आदिमानव श्रम नहीं करता, तो आधुनिक मानव को इतनी सुख-शान्ति कहाँ से मिलती

प्रयास एवं परिश्रम से ही मनुष्य को किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त होती है । कहते हैं कि शेर को भी मृग का शिकार करना ही पड़ता है । मृग स्वयं शेर के मुख में नहीं आ जाता ।

निरुद्यमी मनुष्य भाग्यवादी हो जाते हैं और सब कुछ भाग्य के सहारे छोड़कर जीवन के दिन यूँ ही पूरे करते हैं, किन्तु अपने परिश्रम पर भरोसा करने बाले लोग सफलता के लिए अन्तिम क्षण तक प्रयासरत रहते हैं । ‘महादेवी वर्मा’ ने कहा है-

“अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे,

फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खींचे,

पर पहुँचेगा पन्थी दूसरे तट पर उस दिन,

जब चरणों के नीचे सागर लहराएगा ।”

अर्थात् लक्ष्य तक पहुँचने के लिए लहरों के समान प्रवाहमान रहने की आवश्यकता है । यदि एक स्थान पर खड़े रहकर हम आगे बढ़ने की मात्र कल्पना करते रहें और स्वयं को कष्ट देने से कतराते रहें, तो हम भवसागर को सरलता से पार नहीं कर पाएंगे ।

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