श्रम की प्रतिष्ठा से
क्या प्रेरणा मिलती है
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कर्मयोग की महत्ता पर बल देते हुए निबंधकार ने समाज के सभी वर्ग के लोगों के श्रम करने पर आग्रह किया है । विनोबाजी का विचार है कि जो अपने पसीने से रोटी कमाता है, वह पाप-कर्मों से कोसों भागता है । शारीरिक श्रम और दिमागी काम का मूल्य भी समान होना चाहिए । ... लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता ।
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कर्मयोग की महत्ता पर बल देते हुए निबंधकार ने समाज के सभी वर्ग के लोगों के श्रम करने पर आग्रह किया है। विनोबाजी का विचार है कि जो अपने पसीने से रोटी कमाता है, वह पाप-कर्मों से कोसों दूर भागता है । शारीरिक श्रम और दिमागी काम का मूल्य भी समान होना चाहिए । लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता । हां, जो श्रम नहीं टालता है, वह कर्म योगी हो ही नहीं सकता।
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