श्रव एव परो यज्ञः श्रम एव परं तपः ।नास्ति किश्चित् श्रमासाध्यं तेन श्रमपरो भव ॥५॥इसका हिंदी मतलब बताएं
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श्रव एव परो यज्ञः श्रम एव परं तपः ।नास्ति किश्चित् श्रमासाध्यं तेन श्रमपरो भव ॥५॥ इस श्लोक का हिंदी में मतलब है कि श्रवण ही सबसे बड़ा यज्ञ है और परम तप ही सबसे बड़ा साधन है। कोई भी कार्य बिना मेहनत के साध्य नहीं होता, इसलिए मेहनत पर बल देना चाहिए।
Explanation:
- श्रव एव परो यज्ञः श्रम एव परं तपः ।नास्ति किश्चित् श्रमासाध्यं तेन श्रमपरो भव ॥५॥ इस श्लोक का हिंदी में मतलब है कि श्रवण ही सबसे बड़ा यज्ञ है और परम तप ही सबसे बड़ा साधन है। कोई भी कार्य बिना मेहनत के साध्य नहीं होता, इसलिए मेहनत पर बल देना चाहिए।
- इस श्लोक में श्रवण का उल्लेख यज्ञ के रूप में किया गया है जो हमारे ज्ञान को विस्तारित करता है और तप का उल्लेख साधन के रूप में किया गया है जो हमारी साधना और सामर्थ्य को बढ़ाता है।
- इस प्रकार, यह श्लोक हमें बताता है कि मेहनती होना बहुत महत्वपूर्ण है और हमें मेहनत के माध्यम से परमतत्त्व की प्राप्ति करनी चाहिए।
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