Political Science, asked by kumarisaroj1544, 14 days ago

शास्त्री जी के प्रधान ने प्रधानमंत्री काल में देश को किन दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा​

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Answered by deepa4549
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Explanation:

संदर्भ: -

स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख आन्दोलनकर्ता श्री लालबहादुर शास्त्री का 02 अक्टूबर को जन्म दिवश था।

परिचय :-

लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख आन्दोलनकर्ताओ में से एक थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इनका काल में विभिन्न प्रकार के आर्थिक सुधार यथा हरित क्रांति तथा भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए जाना जाता है।

लाल बहादुर शास्त्री जी का प्रारम्भिक जीवन

लालबहादुर शास्त्री जी का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री जी की माँ का नाम रामदुलारी था। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की।

शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तमदास टंडन और पण्डित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया।

शास्त्रीजी सच्चे गाँधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन में इनका उल्लेखनीय योगदान रहा ।

इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरन्तर बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढ़ते हुए वे नेहरूजी के मंत्रिमण्डल में गृहमन्त्री के प्रमुख पद तक जा पहुँचे। इन्होने रेल मंत्री रहते हुए एक दुर्घटना से व्यथित होकर रेल मंत्री के रूप में अपना त्यागपत्र दे दिया था। नेहरू जी की म्रुत्यु के उपरान्त ये भारत के प्रधान मंत्री बने।

प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री

वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस दौरान नवोदित भारत में कई सुधार हुए तथा भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा

आगे का रास्ता:

भारत की बड़ी जनसँख्या तथा डिजिटल डिवाइड को देखते हुए यह अत्यंत कठिन स्थिति प्रतीत होती है परन्तु समिति की अनुशंसाएं इन समस्याओं को कम करने में सहायक होंगी। कहीं न कहीं आभासी न्यायलय से वादों को तीव्र समाधान संभव हो सकेगा। तकनीकी युग के कारण इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स से बहुत दिनों तक बचा नहीं जा सकता। । समिति ने बार संघों और बार काउंसिल के सदस्यों के परामर्श से प्रायोगिक आधार पर एक पूर्ण आभासी अदालत प्रणाली को क्रियान्वित करने के लिए कहा है।

हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति

इस समय का भारत भोजन संकट से गुजर रहा था। अमेरिका ने भारत की अस्मिता को आघात पहुंचाते हुए खाद्यानो की आपूर्ति कर रहा था। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री ने उपवास एवं व्रत का सहारा लिया। इसके साथ ही साथ इन्होने हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति का बीजारोपण किया गया जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत कृषि उत्पादों का प्रमुख निर्यातक तथा दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर स्थापित हो गया है।

नवीन संस्थाओ का गठन

इनके काल में भारत को विकास के पथ पर अग्रसर करने के उद्देश्य से इलाहाबाद में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान , ट्राम्बे में प्लूटोनियम प्रसंस्करण सयंत्र की स्थापना, आईसीएमआर का पुनर्गठन , होमी जहाँगीर भाभा की पहल पर स्टडी ऑफ़ नुक्लेअर एक्सप्लोजन फॉर पीसफुल पर्पस की स्थापना की। इसके साथ चेन्नई पत्तन का जवाहर डाक ,तथा अपर कृष्णा परियोजना की नीव इन्ही के समय में रक्खी गई।

भारत पाकिस्तान युद्ध

1958 में पकिस्तान में तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हुए जनरल मोहम्मद आयूब खान ने भारत के विरुद्ध 1965 में युद्ध छेड़ दिया। अमेरिका से सहायता प्राप्ति तथा चीन से भारत की हार से पकिस्तान ने भारत पर आक्रमण का बेहतर अवसर माना। 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। तीनों प्रमुखों ने प्रधानमंत्री को सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?" शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?" प्रारंभिक असफलताओ के उपरान्त भारतीय सेना के अदम्य शौर्य तथा शास्त्री जी द्वारा दिए गए "जय जवान जय किसान " के उद्घोष से भारत ने पकिस्तान के आक्रमण का मुहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना ने लाहौर पर धाबा बोल दिया तथा अमेरिका ,रूस तथा संयुक्त राष्ट्र के हस्तछेप से युद्ध विराम हो गया। इस युद्ध में भारत प्रभावी स्थिति में था।

Answered by poonammishra148218
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Answer:

लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे जब 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था। इस युद्ध के दौरान शास्त्री जी के प्रधानमंत्री काल में देश को दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

पहली चुनौती थी पाकिस्तान के आक्रमणों का सामना करना। 1965 में पाकिस्तान ने भारत के कई जगहों पर आक्रमण किए थे

Explanation:

लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर देश के विकास और उन्नयन के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनमें से दो बड़ी चुनौतियां निम्न थीं:

1965 का भारत-पाक युद्ध - भारत-पाक युद्ध 1965 में भारत ने कश्मीर के विवाद को लेकर पाकिस्तान से लड़ाई की। इस युद्ध में दोनों देशों के सैनिकों के बीच बड़ी लड़ाई हुई थी। इस युद्ध में शास्त्री जी ने देश को अंतरिक सुरक्षा में मजबूत करने के लिए जीवन की बलि दी। उन्होंने कहा था कि देश की सुरक्षा के लिए उन्हें अपने परिवार को छोड़कर जाना होगा। शास्त्री जी ने इस युद्ध में जीत हासिल की और देश के संवैधानिक मानदंड को उच्चतर बनाने में सफल रहे।

खादी की अभाव - शास्त्री जी के प्रधानमंत्री काल में देश में खादी की भारी कमी थी। उन्होंने इस समस्या को हल करने के लिए "जय जवान, जय किसान" अभियान की शुरुआत की।

लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे जब 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था। इस युद्ध के दौरान शास्त्री जी के प्रधानमंत्री काल में देश को दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

पहली चुनौती थी पाकिस्तान के आक्रमणों का सामना करना। 1965 में पाकिस्तान ने भारत के कई जगहों पर आक्रमण किए थे। शास्त्री जी ने इस आक्रमण का जवाब देने के लिए भारतीय सेना को निर्देश दिए थे।

दूसरी चुनौती थी भारत के आर्थिक विकास का संभालना। शास्त्री जी को विकास और उन्नयन के क्षेत्र में देश को आगे बढ़ाना था। उन्होंने उच्च विद्युत मंत्रालय के मंत्री गुलज़ारिलाल नंदा को लाल बहादुर शास्त्री विद्युत प्रोयोग केंद्र की स्थापना करने के लिए निर्देश दिए थे। इससे भारत में विद्युत का उत्पादन तेजी से बढ़ा और देश के आर्थिक विकास को एक नई ऊँचाई प्राप्त हुई।

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