‘शास्त्रीय संगीत की तुलना में लोकगीत का वर्चस्व अधिक है।' कैसे? स्पष्ट कीजिए ।
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लोकसंगीत की तुलना में लोकगीत का वर्चस्व अधिक है
लोकगीत आम जनमानस से जुड़े होते हैं, ये एकदम सरल होते हैं। जबकि शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने की लिये विशेष अभ्यास और शिक्षा-दीक्षा की आवश्यकता पड़ती है। लोकगीतों को पनपने के लिये किसी सी विशेष भाषा या नियम की जरूरत नही होती है। ये एक आम व्यक्ति की जिह्वा पर प्रकट होकर आगे बढ़ते रहते है। लोकगीत भाषा पर नही बल्कि बोली पर निर्भर रहा है, और बोली जनसाधाऱण का हथियार है। लोकगीत किसी लेखनी या भाषा पर या बड़े-बड़े गूढ नियमों पर निर्भर नही रहते। जबकि शास्त्रीय संगीत के नियम बडे गूढ़ होते हैं, जिन्हें समझने के लिये विशेष दक्षता की आवश्यकता पड़ती है।
लोकगीतों के वर्चस्व का एक कारण इनकी सरलता रही है, जिसे कोई अनपढ़ व्यक्ति भी अपना सकता है जबकि शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने के लिये थोड़ा शिक्षित होना जरूरी होता है। शास्त्रीय संगीत को सीखने के लिये योग्य गुरू की आवश्यकता होती है, जबकि लोकगीत लोकजिह्वा का सहारा लेकर निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। लोकगीतों में आम जीवन से जुड़े प्रसंगों का वर्णन होता है। लोकगीतों सामान्य जन के त्योहारों, उत्सवों से जुड़े होते हैं इस कारण ये सहजता से जनमानस में लोकप्रिय हो जाते हैं, जबकि शास्त्रीय संगीत के माध्यम से विशेष प्रसंगों का वर्णन किया जाता है जो जरूरी नही कि आम जनजीवन से जुड़े हों।