शीशू की मुसकन देखकर कवि को कया लगता है
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निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा सम्पर्क
अँगुलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होर्ती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान !
कविता तथा कवि का नाम लिखिए।
मधुपर्क क्या होता है?
शिशु की दंतुरित मुसकान कवि को कब शोभायमान लगती है?
बालक कवि को कैसे देख रहा है और क्यों ?
‘फसल’ शीर्षक के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
“छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
‘रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का।’ पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
बच्चा अनजान व्यक्ति की ओर किस प्रकार देखता रहता है? “यह दंतुरित मुसकान” कविता के अनुसार उसे देखकर कवि नागार्जुन क्या कहकर आँखें फेर लेना चाहते हैं?
यह दंतुरहित मुस्कान और फसल (नागार्जुन)
Answer
कविता-‘यह दंतुरित मुसकान,’ ‘कवि-नागार्जुन’।
दूध, घी, शहद, दही और गंगाजल को मिलाकर बनाया गया पेय जिसे ‘पंचामृत’ कहते हैं। यह शिशु को स्वस्थ रखता है तथा शिशु का यह सम्पूर्ण आहार है। इसे ही यहाँ मधुपर्क कहा गया है। मधु पर्क दही, घी, शहद, दूध और गंगाजल का मीठा पेय पदार्थ होता है। परंतु काव्यांश में मधु पर्क का प्रयोग मां के उस प्यार के लिए किया गया है जो बच्चे को जीवन देने वाली मिठास से भरपूर है।
कवि का बच्चे के साथ आँखें मिलना, उसके चेहरे पर मुसकान तैर जाना। मुसकान कवि को शोभायमान लगना और उसके हृदय में शिशु के प्रति प्रेम का उमड़ना। जब बच्चा अपने नन्हे नन्हे नवोदित दांतों से सजी मुस्कान के साथ कनखियों से देखता है तब उसकी मुस्कान अधिक सुंदर बन जाती है |
बालक कवि को कनखियों से या तिरछी नजरों से देख रहा है। वह कवि से आँखें बचाकर चुपके से देखने की कोशिश करता है परन्तु नज़रें मिलते ही संकोचवश नज़रें हटा लेता है क्योंकि वह कवि से अपरिचित है और पिता के रूप में उसे नहीं पहचानता है। अब तक सिर्फ माँ से ही उसका परिचय था इसलिए कवि के सामने आते ही एकटक देखता ही रहता है और आंखें मिल जाने पर अपनी नजरें चुरा लेता है।
‘फसल’ शीर्षक के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार विभिन्न तत्वों के सहयोग, किसानों के परिश्रम और लगन से छोटा सा बीज अंकुरित, पुष्पित और पल्लवित होता है और फिर फसल का रूप ले लेता है उसी प्रकार सभी के सहयोग, परिश्रम और लगन से समाज में कोई भी परिवर्तन लाया जा सकता है। ‘फसल’ शीर्षक किसानों के लगनशील परिश्रम का भी प्रतीक है जो निर्जीव बीज को सजीव रूप देते हैं।
शिशु के मुसकाते मुख और उसके धूल-धूसरित कोमल अंगों को देखकर कवि उल्लसित है। कवि बालक की तुलना कमल की सुंदरता से करता है। धूल में सने बालक के सुंदर अंगों को देखकर उसे लग रहा है मानो कीचड़ में खिलने वाले कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोपड़ी में खिल रहे हैं।
फसल उत्पन्न करने में प्राकृतिक उपादानों जैसे-सूर्य का प्रकाश और हवा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वातावरण के ये दोनों ही अवयव फसल के योगदान में अपनी-अपनी भूमिका अदा करते हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है। फसलों को बढ़ाने में हवा के तत्वों का भी योगदान रहता है इसलिए कवि को फसल में थिरकती हवा का संकोच समाया हुआ दिखाई पड़ता है।
बच्चा अनजान व्यक्ति (कवि) की ओर बिना पलक झपकाए लगातार देखता रहता है। वह उसे पहचानने का प्रयास कर रहा है। साथ ही उसके मन में आगंतुक के बारे में जानने का कौतूहल भी है। कवि यह कहकर कि कहीं बच्चा उन्हें एकटक देखते हुए थक न जाये, आँखें फेर लेना चाहते हैं।