शोश पर मंगल कलश रख
भूलकर जन के सभी दुख
चहते हो तो मना लो जन्मदिन भूखे वतन का
जो उदासी है हृदय पर
वह उभर आती समय पर,
पेट की रोटी जुटाओ,
रेशमी झंडा उडाओ.
ध्यान तो रखो मगर उस अधकटे नंगे बदन का
तन कहीं पर मन कहीं पर,
फूल की ऐसी विदाई
शूल को आती रूलाई,
ऑधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का
आग ठंडी हो, गरम हो,
तोड़ देती है, धरम को,
कांति है आनी किसी दिन
आदमी घड़ियां रहा गिन
राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का
जन्मदिन सूखे वतन का
(क) शीश पर...माल भूखे वतन का पंक्तियों के माध्यम से क
(ख) राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का पंक्ति के म
चाहता है ?
(ग) ऑधियों के साथ जैसे हो रहा है सौदा चमन का पंक्ति का क्या
(घ) आग ठंडी हो या गरम हो का प्रतिकार्य क्या है?
(ड) अधजला दीपक पबंध में रेखांकित पद का भेद क्या है?
(च) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक लिखिए ?
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शीश पर मंगल कलश रख भूलकर जन के सभी दुख चाहते हो तो बना लो जन्मदिन भूखे वतन का पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है
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