शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख कीजिए । -
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¿ शैशवावस्था की संवेदनाओं का उल्लेख कीजिए।
➲ शैशवावस्था की छः संवेदनाएं होती हैं। जो इस प्रकार हैं...
- दृष्टि संवेदना
- श्रवण संवेदना
- स्वाद संवेदना
- गंध संवेदना
- त्वचीय संवेदना
- आंतरिक संवेदना
दृष्टि संवेदना : दृष्टि संवेदना का विकास बालक के जन्म से ही होने लगता है। बालक जन्म के बाद सबसे पहले प्रकाश एवं अंधकार का अंतर अनुभव करता है। बालक अंधकार से प्रकाश में आता है, इसलिए उसे प्रकाश का अनुभव एक अनोखा अनुभव प्रतीत होता है। बहुत अधिक तीव्र प्रकाश में बालक बेचैनी का भी अनुभव कर सकता है और सामान्य प्रकाश में सहज रहता है। कुछ समय बाद बालक रंगों में भेद भी समझने लगता है।
श्रवण संवेदना : श्रवण संवेदना का विकास बालक में जन्म के कुछ समय बाद ही होने लगता है। अपने जन्म के बाद ध्वनि को समझने लगता है। वह ध्वनि को पहचानने लगता है। चार माह के भीतर पालक के अंदर श्रवण संवेदना अच्छी तरह से विकसित हो जाती है और वह तेज ध्वनि और मद्धिम ध्वनि के अंतर को समझने लगता है।
स्वाद संवेदना : स्वाद संवेदना का विकास बालक के जन्म के साथ ही होने लगता है। बालक की अपने जन्म के कुछ समय बाद ही स्वाद के अंतर को समझने लगता है और अपनी माता के दूध और अन्य पदार्थों के बीच के अंतर को अथवा खट्टे, मीठे, कड़वे पदार्थों के अंतर को समझने लगता है।
गंध संवेदना : गंध संवेदना भी बालक के जन्म के तीन माह के भीतर ही विकसित हो जाती है और जन्म के एक वर्ष के बाद यह संवेदना पूर्ण विकसित हो जाती है।
त्वचीय संवेदना : त्वचीय संवेदना बालक के जन्म के बाद ही प्रकट होने लगती है। उदाहरण के लिए ठंडे पानी से स्नान कराया जाए तो रोने लगता है और गर्म पानी से स्नान कराने पर सहज महसूस करता है। यह स्पर्श संवेदना है। वह अपने माता के स्पर्श को भी महसूस करने लगता है।
आंतरिक संवेदना : आंतरिक संवेदना बालक के जन्म के कुछ समय बाद ही विकसित हो जाती है। जन्म के कुछ समय बाद बालक को तेज भूख लगती है और वह माता के दूध की खोज करने लगता है, ना मिलने पर रोने लगता है और मिल जाने पर सुख अनुभव करता है। आंतरिक संवेदना भूख-प्यास से संबंधित संवेदना होती है, जो बालक के जन्म के बाद ही विकसित हो जाती है।
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