शिष्टाचार की सीख write essay
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शिष्ट या सभ्य पुरुषों का आचरण शिष्टाचार कहलाता है । दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार, घर आने वाले का आदर करना, आवभगत करना, बिना द्वेष और नि:स्वार्थ भाव से किया गया सम्मान शिष्टाचार कहलाता है ।
शिष्टाचार से जीवन महान् बनता है । हम लघुता सं प्रभुत्ता की ओर, संकीर्ण विचारों से उच्च विचारों की ओर, स्वार्थ से उदार भावनाओं की ओर, अहंकार से नम्रता की ओर, घृणा से प्रेम की ओर जाते हैं । शिष्टाचार का अंकुर बच्चे के हृदय में बचपन से बोया जाता है । छात्र जीवन में यह धीरे-धीरे विकास की ओर अग्रसर होता है ।
शिक्षा समाप्त होने पर और समाज में प्रवेश करने पर यह फलवान् होता है । यदि उसका आचरण समाज के लोगों के प्रति घृणा और द्वेष से भरा हुआ है, तो वह तिरस्कृत होता है, साथ ही उन्नति के मार्ग बंद होने प्रारम्भ हो जाते हैं, उच्च स्तर प्राप्त करने की आकाक्षाएं धूमिल हो जाती हैं । इसके विपरीत मधुरभाषी शिष्ट पुरुष अपने आचरण से शत्रु को मित्र बना लेता है । उन्नति के मार्ग स्वत: खुल जाते हैं ।
बच्चे का पहले गुरु उसके माता-पिता हैं जो उसे शिस्टाचार का पहला पाठ पढ़ाते हैं । दूसरा पाठ वह विद्यालय में जाकर अपने आचार्य या गुरु से पढ़ता है । ज्ञान के बिना छात्र का जीवन अधूरा है । प्राचीन काल में एकलव्य, कर्ण, उपमन्यू इत्यादि ने गुरु की महिमा और गुरु भक्ति दोनों को अमर कर संसार में गुरु-महत्ता का उदाहरण प्रसूत किया ।
विनम्रता शिष्टाचार का लक्षण है । किसी के द्वारा बुलाए जाने पर हाँ जी, नहीं जी, अच्छा जी कहकर उत्तर देना चाहिए । घर आए मेहमानों का मुस्कराकर स्वागत करना उनका अभिवादन करना शिष्टाचार है । रेलगाड़ी या बस में वृद्ध, औरतों, बच्चों को सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, दूसरों की बातों में दखल न लेना, रोगी को अस्पताल ले जाना, दूसरों के मामलों में रुचि न लेना, दु:खी व्यक्ति को सान्त्वना देना, कष्ट में मित्र की सहायता करना शिष्टाचार है ।
शिष्टाचार के विपरीत आचरण जैसे- दूसरों को देखकर अकारण मुस्कराना, दूसरों की बात काटकर अपनी बात कहना, सड़क पर चलते हुए लोगों से गाली-गलौच करना, लड़कियों को छेड़ना, उन्हें आँख फाड़कर देखना, दुर्घटना से घायल हुए व्यक्ति को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना, पर निन्दा में रुचि रखना अशिष्टता है ।
समाज, धर्म, पुस्तकालय, विद्यालय, सरकारी संस्थाएं और व्यक्तिगत संस्थाएं इनके अपने-अपने नियम होते हैं । जैसे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में जूते पहनकर जाना मना है, हमें यहाँ पर उन नियमों का पालन करना चाहिए । पुस्तकालय में जाकर जोर से बोलना, पुस्तकें फाड़ना, उन्हें देर से वापिस करना शिष्टाचार के विरूद्ध है ।
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भ्रष्टाचार यानी भ्रष्ट आचरण। गलत तरीको को अपनाकर जो व्यक्ति अनैतिक कार्यो में संलग्न हो जाता है, उसे भ्र्ष्टाचारी कहते है। आज पूरे भारत के व्यवस्था प्रणाली में भ्रष्टाचार ने अपनी जगह बना ली है। लोग सत्य के मार्ग पर तरक्की पाने के जगह भ्रष्ट नीतियों को अपनाते है। उदाहरण के तौर पर किसी को दफ्तर में प्रमोशन चाहिए, या नौकरी चाहिए तो वह रिश्वत देकर अपना काम करवाते है। यह न्याय व्यवस्था के खिलाफ है। आजकल की विडंबना यह है कि अगर ऐसे लोग रिश्वत लेने या देने के जुर्म में पकड़े भी जाते है, तो रिश्वत देकर छूट भी जाते है। कई दुकानदार और व्यापारी सस्ते वस्तुओं को अधिक दामों में बेचकर मुनाफा कमाते है।
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