शिष्य को लगा कि ऐसा गंदा पानी गुरु जी के लिए ले जाना सही नहीं हैं?
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एक बार कि बात है, एक महात्मा अपने कुछ शिष्यों के साथ पैदल ही यात्रा पर थे। वे चलते-चलते किसी गांव में पहुंच गए। ये गांव काफी बड़ा था, वहां घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी थी। महात्मा जी थक चुके थे और उन्हें बहुत प्यास लगी थी, तो उन्होनें अपने एक शिष्य से कहा कि हम इसी गांव में कुछ देर रूकते हैं, तुम मेरे लिए पानी ले आओ। जब शिष्य गांव के अंदर थोड़ा घुमा तो उसने देखा कि वहां एक नदी थी, जिसमें कई लोग कपड़े धो रहे थे, तो कई लोग नहा रहे थे और इसी वजह से नदी का पानी बहुत ही गंदा सा दिख रहा था।
शिष्य को लगा कि ऐसा गंदा पानी महात्मा जी के स्वास्थ्य को खराब कर सकता है, उन्हें ये पानी नहीं पिलाया जा सकता। इसलिए शिष्य बिना पानी लिए ही वापस लौट आया और नदी के गंदे पानी की सारी बात महात्मा जी को बता दी। इसके बाद महात्मा जी ने किसी दूसरे शिष्य को पानी लाने के लिए भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य पानी साथ लेकर लौटा।
महात्मा जी ने इस दूसरे शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम ये पानी कैसे लाए? शिष्य बोला की गुरू जी, नदी का पानी वास्तव में बहुत ही गंदा था। लेकिन लोगों के नदी से चले जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया और कुछ देर बाद नदी में मिट्टी नीचे बैठ गई और साफ पानी ऊपर आ गया। उसके बाद मैं उसी नदी से आपके लिए पानी भरकर ले आया।