शांति का आशय स्पष्ट कीजिए
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शांति किसको कहते हैं? मन जब स्थिर हो जाता है तो उस अवस्था को कहते हैं शांति। मन की चचलता जब तक है तब तक मन अशांत रहता है। शांति पाने का उपाय क्या है? इसमें हर वस्तु-चाहे बड़ी हो या छोटी, सबमें एक ही सत्ता का अभिप्रकाश है। जैसे एक सोना है, जिससे तरह-तरह के जेवर बनते हैं। यह एक महिला के लिए चूड़ी, हार या अंगूठी है, किंतु एक सुनार के पास जाओ तो वह तोल के देखेगा कि सोना कितना है, क्योंकि उसके लिए वह केवल सोना है। उसी तरह दृष्टि छोटी होने से, नजर छोटी होने से वस्तु भेद होगा। जब तक नजर छोटी है, जब तक वृहत् का आभास नहीं होगा। जब तक दृष्टिगत भेद करेंगे तब तक ऊंच-नीच का भेद करेंगे। मन जब बड़ा हो गया तो साधना के माध्यम से देखेंगे कि एक ही वस्तु मौलिक है। उसी को विभिन्न नाम दे दिए गए है। यही उसकी सीमारेखा है। जैसे सोना की सीमारेखा यह है कि उसे विशेष तरह से काट दिया जाए तो वह हार का रूप ले लेता है। रेखा के आधार पर हम नाम निर्धारण करते हैं। साधक देखेंगे कि हर सत्ता में एक ही तत्व है। मूल वस्तु एक है। मूल वस्तु जब एक है तब एक एक वस्तु से दूसरे वस्तु की ओर मन क्यों दौड़ता है? क्यों किसी से प्रेम है, किसी से द्वेष और किसी से राग है?
वस्तु में जब तक रूप देखेंगे तब तक ऐसा होगा और जब देखेंगे कि सभी वस्तु एक ही है, सभी सोना है, विभिन्न नाम मात्र हैं तो जैसे एक विशेष जेवर के प्रति सुनार का आकर्षण नहीं रहता है वैसे ही साधक जब एक ही सत्ता की ओर देखेंगे, तब मन इस पर से उस पर जाएगा नहीं। सबमें परमात्मा हो तो मनुष्य हर वस्तु में एक सत्ता को, मूल वस्तु को देखेंगे और देखेंगे कि जगत में हर सत्ता परमात्मा की है और हर वस्तु परमात्मा से घिरी हुई है। जिस वस्तु के बारे में वह सोच सकते है वह भी परमात्मा है और जिस वस्तु के बारे में वह नहीं सोच सकते हैं वह भी परमात्मा है। इसलिए मन से चचलता हट जाती है, मन में जब स्थिरता आ जाती है तो वही शांति है।