Hindi, asked by 14rts030249, 6 months ago

शांति का जीवन शिक्षा में जीवन है इस पर अनेक विचार प्रकट कीजिए​

Answers

Answered by tdkarpe552
0

Answer:

जीवन में शांति होनी चाहिये शांती से हमारा मन शांत होता है

Answered by shreyamSV7542
0

शांति जीवन की आधारभूत अशंका है, लेकिन विडंबना है, वह आदिकाल से इसके लिए अशांति के आयोजन में लगा रहा है। यही कारण है अशांति कभी धर्म के रथ पर आती है तो कभी राजनीति की सखी बनकर प्रस्तुत होती है। यही कारण है कि विश्व मानवता हिंसा से लहूलुहान हो चुकी है और लगभग 20 हजार छोटे-बड़े युद्धों के बाद भी निःशस्त्रीकरण एक दिवास्वप्न हो रहा है और अभी भी परमाणु बम और आतंकवाद के विस्फोटों से हमारी धरती हिल रही है। विश्वशांति के लिए किये जा रहे प्रयास वास्तव में एक आडंबर प्रतीत होता है, या तो शांति का संकल्प एक प्रवंचना है तो क्या मान लिया जाये, जैसे बाघ और सिंह के लिए पशु और मनुष्यों का शिकार उसकी प्रकृति का अनिवार्य अंग है ही निराशावाद भी इसमें कमाल का है। भले डार्विन महोदय ने अस्तित्व के लिए जीवन संघर्ष और उसमें योग्यतम की विजय का सिद्धांत निरूपित किया है लेकिन फिर मानव जैसा सीमित शरीर बल का प्राणी किस प्रकार प्रभुसत्ता का अधिकारी बन गया। यदि हम मानव की विजय यात्रा में शरीर बल के साथ उसके बुद्धिबल के कारण उसकी विजय पताका को मानते हैं तो दूसरा प्रश्न आता है कि मानव समाज में बालक और वृद्ध, अशक्त और अक्षम व्यक्ति भी किस प्रकार सुरक्षित और संरक्षित रहते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि शरीर बल और बुद्धिबल के अलावा भी नीतिबल और सामाजिक मर्यादा भी मानव सभ्यता का आधार है। सामाजिक और नैतिक जीवन मानवीय सभ्यता का अभिन्न अंग है जो अनुवांशिकता से कम किंतु वातावरण तथा शिक्षा और संस्कार से अधिक पाता है। मानव सभ्यता के उर्द्धचरण की कुँजी भी शिक्षा में निहित है। इसी कारण वह सभ्यता का सम्राट भी है और अपना भाग्य विधाता भी।

मानव सभ्यता के आदिकाल से सामाजिक सद्भाव और जागतिक शांति के लिए महान संतो ने असंख्य प्रयास किये लेकिन आज तक विश्व शांति मृगतृष्णा ही है। भगवान महावीर हों या बुध्द, जरथुरस्त हों या ईसा मसीह, सबों के अथक प्रयास से भी युध्द की ज्वाला और हिंसा व आतंकवाद की लपटें बुझ नहीं पायी हैं। आधुनिक युग की भुमिका में ही अगर सोचें तो 20 वीं शताब्दी यदि दो विश्वयुद्धों की और नरसंहार की शताब्दी रही तो 21 वीं सदी आतंकवाद और मानव बम की त्रासदी से कलंकित हो गई है। विश्व शांति के लिए बनायी गयी संस्थाएँ मूक और निस्तेज होकर महासंहार की तैयारियाँ और संकीर्ण राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर रक्तरंजित इतिहास को देख रही है। वस्तुतः आधुनिक युग की राजनीति विश्व की अशांति के समाधान का उपाय नहीं बल्कि उसका ही मूल कारण है। विश्व में विषमतामूलक आर्थिक संरचना या शोषण और संग्रह इन सबके मूल में राजनीति का शनिश्चर ही है। यहाँ तक कि पर्यावरण के विनाश और वैश्वीकरण के नाम पर छद्म पूँजीवाद और उससे होने वाले नुकसान का संचालन सूत्र भी राजनीति के हाथों में है। संक्षेप में, सभ्यता का संकट जैसा कि विश्व के 51 नोबल पुरस्कार विजेताओं ने घोषित किया है कि उसके मूल में मूल्यहीन राजनीति का ही हाथ है, इसलिए विश्व की संस्कृति की पुनःरचना के लिए शिक्षा ही अंतिम आशा है। लेकिन त्रासदी यह है कि मूल्यहीन शिक्षा व्यापारवाद की सहचरी हो गयी है और वह सत्ता एवं संपत्ति के लिए दासी बनकर निस्तेज और निःवीर्य बन गयी। उसमें शांतिमय समाज निर्माण के लिए तत्व तो नहीं ही है, उसमें न तो जीवन है और न ही जीविका की सर्वांगीण गारंटी ही है।

Similar questions