शीत युद्ध के बाद भारत की विदेश नीति पर निबंध
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वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते परिदृश्य के कारण भारत की विदेश नीति में भी बदलाव आया है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विदेश नीति में जिन विचारों को अपनाया गया था उनमें समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है ।
शीत युद्ध की स्थिति, सोवियत संघ का पतन, शीत युद्ध का अन्त, अमेरिका का इराक पर हमला, आतंकवादी घटनाएँ विशेषकर अमेरिका तथा भारत में और विश्व पर अमेरिकी दादागिरी तथा युरोपियन युनियन का बनना, अफ्रीकी संघ का निर्माण, सार्क, जैसे क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण आदि घटनाओं ने भारत की विदेश नीति को बदलते संबंधों के आधार पर पुर्नविचार करने के लिए एक नई दिशा प्रदान की ।
विद्वानों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बदलते परिदृश्य के कारण भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी वैदेशिक नीति को नया रूप प्रदान करने की होगी । भारत को परम्परागत हितों, राष्ट्रीय हितों एवं सुरक्षा, एकता एवं अखंडता को बरकरार रखना, तीव्र गति से आर्थिक विकास, एवं इस बात को निश्चित करना होगा कि वैदेशिक नीतियों के निर्धारण में भारत बाहरी प्रभावों से मुक्त रह सके ।
आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत अपने वैदेशिक संबंधों को फिर से नये रूप में प्रस्तुत करे । आज अमेरिका पाकिस्तान के बजाय भारत के साथ अधिक मित्रता की नीति अपना रहा है । भारत को सोच-समझकर अमेरिका के साथ आर्थिक विकास की नीति अपनानी होगी । इसी प्रकार पाकिस्तान से आतंकवाद का मुद्दा, तथा कश्मीर का मुद्दा द्विपक्षीय बातचीत के आधार पर हल करने के प्रयास ढूँढने होंगे ।
साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन और सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के दावे को विश्व के विकासशील देशों के सामने सुदृढ़ तरीके में प्रस्तुत करना होगा ताकि वो भारत को इस सम्मान को दिलाने में सहायता करे । इसके अलावा पड़ोसियों के साथ भी भारत को आर्थिक तथा सुरक्षात्मक तनाव पर अधिक ध्यान देने की नीति अपनानी होगी ।
स्पष्ट है कि विश्व के बदलते राजनीतिक परिवेश में भारत को समायोजन की नीति का पालन करना उचित होगा इसके द्वारा भारत न केवल अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रख सकता है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर एक नायक की भूमिका भी निभा सकता है ।