शीत युद्ध की समाप्ति के उपरांत भारत की विदेश नीति की प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए
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शीत युद्ध के बाद भारत की नीति अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति अलग-अलग थी। शीत युद्ध के समय से ही भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाना आरंभ कर दिया था, जिसके कारण अमेरिका भारत के विरुद्ध रहता था और वह अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन करता था। इस अवधि में भारत और अमेरिका के संबंध बहुत अधिक मधुर नहीं रहे, जबकि भारत के सोवियत संघ के साथ संबंध मधुर बने रहे और भारत और सोवियत संघ एक-दूसरे के साथ निरंतर सहयोग करते रहे।
यद्यपि भारत का सोवियत संघ के साथ मधुर संबंध था और अमेरिका के साथ संबंध मधुर नहीं थे, लेकिन फिर भी भारत किसी ग्रुप में नहीं शामिल रहा वह गुटनिरपेक्ष की नीति अपनाता रहा और भारत ने गुटनिरपेक्ष की नीति के तहत ही अपने हितों को आगे बढ़ाया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन भारत और उसके जैसे अन्य कई विकासशील देशों का समूह था, जो किसी भी गुट यानि कि अमेरिका के नेतृत्व वाला पूँजीवादी गुट तथा सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी गुट के सदस्य नहीं बनना चाहते थे। इसलिए ऐसे गुटों के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए भारत ने कुछ अन्य देशों के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी और वह शीत युद्ध के आरंभ से लेकर शीतयुद्ध की समाप्ति और उसके बाद तक अपनी इसी नीति का पालन करता रहा।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद दोनों महाशक्तियों में से एक यानि सोवियत संघ कमजोर पड़ गया और अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति रह गया जिससे शीत युद्ध का अवसान हो गया। इसके बाद से भारत और अमेरिका के संबंधों में भी बदलाव आया और भारत के अमेरिका के संबंध उतने कटुता पूर्वक नही रहे। आज के संदर्भ में भारत के सोवियत रूस और अमेरिका दोनों से मधुर व समान स्तर पर संबंध कायम हैं और भारत आज भी किसी गुट के प्रभाव में नही आता।
विदेश नीति के संदर्भ में भारत के अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध हमेशा तनावपूर्ण बने रहे हैं, जिसका एक प्रमुख कारण पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देता रहा है। चीन भी के साथ भी भारत के संबंध कभी गरम तो कभी नरम रहें है।
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