शीतल वाणी में आग के होने से क्या अभिप्राय है
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शीतल वाणी में आग के होने से यह अभिप्राय है कि ऐसी वाणी जिसमें भले ही शीतलता प्रकट होती हो लेकिन उस वाणी में जोश भरा हो। ऐसी वाणी जिसमें संसार के प्रति भले ही विद्रोह की भावना उपजी हो, आक्रोश हो लेकिन जोश में होश नहीं खोया गया हो और वाणी में शीतलता भी भरी हो। ऐसी वाणी जिसमें आक्रोश है, लेकिन शीतलता भी है। ऐसी वाणी ही शीतल वाणी में आग होने का प्रमाण देती है।
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कवि के विचार लोगों में ओज और उत्साह भरने वाले हैं। कवि संसार के हित के लिए अनुचित और अनुपयोगी विश्वासों का विरोध करता है। वह अपनी बात कहने के लिए अप्रिय शब्दों का प्रयोग नहीं करता। वह वाणी की कठोरता में नहीं मधुरता में विश्वास करता है।’आग’ से कवि का संकेत अपने मन की व्यथा भी है। जिसे वह शीतल वाणी में रचित अपने गीतों में छिपाए हुए है ।
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