शुद्ध हवा आते प्रदूषित हवा विच दो अंतर्दशा
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नागरिकता संशोधन कानून, झारखंड विधानसभा चुनाव और हैदराबाद व उन्नाव दुष्कर्म मामले के सामने आने के कारण भले ही पर्यावरण और वायु प्रदूषण का मुद्दा परिदृश्य के पीछे चला गया हो, लेकिन वायु प्रदूषण का संकट एक बड़ी समस्या है, जो अब भी निदान की मांग कर रहा है। लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार के दाएं हाथ को यह पता नहीं है कि बायां हाथ क्या कर रहा है। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेडकर ने सरकार के अपने शोधकर्ताओं के निष्कर्ष का खंडन करते हुए हाल ही में संसद को बताया कि ऐसा 'कोई भी भारतीय अध्ययन नहीं' है, जो जीवन काल के कम होने का संबंध वायु प्रदूषण से जोड़ता हो। जबकि दिसंबर, 2018 के एक अध्ययन में शामिल शीर्ष भारतीय शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में जीवन प्रत्याशा कम हो रही है। अध्ययन में कहा गया था, हमने अनुमान लगाया है कि स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाली न्यूनतम सीमा से भारत में वायु प्रदूषण कम रहता, तो वर्ष 2017 में औसत जीवन प्रत्याशा 1.7 वर्ष ज्यादा रहती और इस वृद्धि के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में जीवन प्रत्याशा दो साल बढ़ जाती।
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जावेडकर का तर्क है कि विशेष रूप से अध्ययन के लिए कोई प्राथमिक या पहली पीढ़ी का आंकड़ा एकत्र नहीं किया गया है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि पिछले दिसंबर में जारी किए गए इस अध्ययन में 50 से अधिक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोगी और शोधकर्ता शामिल थे, जिनमें भारतीय और विदेशी, दोनों थे। और इसे स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बलराम भार्गव ने जारी किया था।
भारत की हवा कितनी प्रदूषित है, इस विषय पर होने वाली मौखिक बहसों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उपेक्षित रह जाता है। प्रदूषित हवा हर किसी को प्रभावित करती है, लेकिन एक समान नहीं। अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर हम अक्सर हवा में विषाक्त पदार्थों से प्रभावित हो सकते हैं, जिसे हम सांस लेते हैं। जैसा कि लाइफकोर्स इपिडेमिलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रोफेसर और अध्यक्ष गिरिधर बाबू कहते हैं, 'वायु प्रदूषण से होने वाले जोखिमों का पूरे समाज पर असमान रूप से असर पड़ता है। जहां गरीब लोग रहते और काम करते हैं, वहां आम तौर पर सबसे खराब गुणवत्ता वाला वातावरण होता है। सामाजिक-आर्थिक रूप से गरीब लोगों का स्वास्थ्य खराब होने की आशंका ज्यादा होती है और यह उन्हें अमीरों की तुलना में वायु प्रदूषण के प्रति ज्यादा अतिसंवेदनशील बनाता है।'
गंगाराम अस्पताल के चेस्ट सर्जन और लंगकेयर फाउंडेशन, दिल्ली के प्रमुख डॉ. अरविंद कुमार, जो प्रदूषित हवा के शिकार लोगों का नियमित रूप से इलाज करते हैं, कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की दिल्ली यात्रा का उदाहरण देते हैं। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने कथित तौर पर उन विभिन्न स्थानों के लिए 1800 एयर प्यूरीफायर खरीदे थे, जहां वह अपने तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान जाने वाले थे। सिर्फ एक बार तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली की प्रदूषित हवा के संपर्क में आए थे, जब वह हैदराबाद हाउस के लॉन में संक्षिप्त सैर के दौरान टहलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चाय पर चर्चा कर रहे थे।
भारत जैसे देश में, जहां आप जिधर भी नजर घुमाएं असमानताएं नजर आती हैं, वहां स्वच्छ हवा का मौद्रीकरण (शुद्ध हवा का व्यवसाय) किया जाना हैरान नहीं करता है। अगर आप दिल्ली के ओबेराय होटल की लॉबी में टहलें, तो आपको एक सूचना पढ़ने को मिलेगी, जिसमें बताया गया है कि इस लक्जरी होटल के कमरों में हवा को बड़े पैमाने पर शुद्ध किया गया है और बाहर की हवा की तुलना में यह साफ है। भारत के सुविधा संपन्न लोग अपने घरों और कार्यालयों में हवा को शुद्ध करने वाले उपकरण (एयर प्यूरीफायर) लगा रहे हैं, हालांकि ये उपकरण बंद वातावरण में ही काम करते हैं और सीमित सुरक्षा प्रदान करते हैं।
यह सब भारत के उन गरीबों को कहां छोड़ता है, जो झोपड़ियों में रहते हैं या सड़कों के किनारे काम करते हैं और जिनके पास ऐसी कोई भी तकनीक या उपकरण नहीं है, जो उनकी सांस लेने वाली हवा की गुणवत्ता को बेहतर बना सकती है?
मैंने गाजियाबाद के एक औद्योगिक इलाके में साइकिल रिक्शा की सवारी की और सड़क के किनारे सामान बेचने वाले दुकानदारों से बातचीत की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि जब हवा की गुणवत्ता का सूचकांक बेहद खतरनाक बताया जाता है, तो