Hindi, asked by sachi2302, 2 months ago

शिवाजी महाराज की प्रशासकीय व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करे

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Answered by abhishekgajbhiye989
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Answer:

शिवाजी महाराज की प्रशासकीय व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करे

Explanation:

शिवाजी ने भू-राजस्व एवं प्रशासन के क्षेत्र में अनेक कदम उठाए. राजस्व व्यवस्था के मामले में अन्य शासकों की तुलना में शिवाजी ने एक आदर्श व्यवस्था बनाई. शिवाजी ने राजस्व व्यवस्था को लेकर एक सही मानक इकाई बनाया था जिसके अनुसार रस्सी के माप के स्थान पर काठी और मानक छड़ी का प्रयोग आरंभ करवाया. यह व्यवस्था काफी सुगम थी जबकि बीजापुर के सुल्तान, मुगल और यहां तक कि स्वयं मराठा सरदार भी अतिरिक्त उत्पादन को एक साथ ही लेते थे जो इजारेदारी या राजस्व कृषि की कुख्यात प्रथा जैसी ही व्यवस्था थी.

किसानों के लिए अनुदान

शिवाजी ने अपने प्रशासनिक सुधार में भूरास्व विभाग से बिचौलियों का अस्तित्व समाप्त कर दिया था. कृषकों को नियमित रूप से बीज और पशु खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था जिसे दो या चार वार्षिक किश्तों में वसूल किया जाता था. अकाल या फसल खराब होने की आपात स्थिति में उदारतापूर्वक अनुदान एवं सहायता प्रदान की जाती थी. नए क्षेत्र बसाने को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों को लगानमुक्त भूमि प्रदान की जाती थ

जमींदारी प्रथा

शिवाजी महराज के समय जमींदारी प्रथा अपने चरम पर थी. इस प्रथा ने भारत के किसान को गरीबी की ओर ढकेल दिया. लेकिन यह कह पाना कि शिवाजी ने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था थोड़ा मुश्किल है. फिर भी उनके द्वारा भूमि एवं उपज के सर्वेक्षण और भूस्वामी बिचौलियों की स्वतंत्र गतिविधियों पर नियंत्रण लगाए जाने से ऐसी संभावना के संकेत मिलते हैं कि उन्होंने जमीदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए कुछ काम किए थे.

सरदेशमुखी और चौथ

वैसे शिवाजी के शासन काल में भू-राजस्व के अलावा राज्य की आय के दो और स्रोत थे सरदेशमुखी और चौथ. यह एक तरह का सैनिक कर था जिसे अनाज के रूप में वसूला जाता था. सरदेशमुखी लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले वसूला जाता था जबकि चौथ बाह्य शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के बदले लिया जाने वाला कर था.

शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था काफी सीमा तक दक्षिणी राज्यों की व्यवस्था पर आधारित थी साथ ही मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था की भी उस पर कुछ छाप थी.

शिवाजी की मृत्यु

एक सच्चे, वीर समाजसेवक और देशभक्त शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग रायगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई

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