श्यामू ने रस्सी का प्रबंध कैसे किया?
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भोला श्यामू से अधिक समझदार था. उसने कहा “बात तो बड़ी अच्छी सोची परन्तु एक कठिनता है. यह डोर पतली है. इसे पकड़कर काकी उतर नहीं सकतीं. इसके टूट जाने का डर है. पतंग में मोटी रस्सी हो, तो सब ठीक हो जाए.”
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श्यामू ने फिर से पिता विश्वेश्वर के कोट से एक रुपया
निकाला और भोला को देकर कहा कि दो अच्छी सी रस्सियाँ मँगा दे क्योंकि एक रस्सी छोटी पड़ सकती है।
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