Shaam Ke Drishya par Kavita
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शाम ढलती हुई सी लगती है
शमअ जलती हुई सी लगती है
रात सपनो की राह पर यारो
अब तो चलती हुई सी लगती है
उनसे मिलने की बात जो तय थी
अब वो टलती हुई सी लगती है
हर तमन्ना न जाने क्यों अब तो
दिल को छलती हुई सी लगती है
जाने क्यों ज़िंदगी हमें अपनी
हाथ मलती हुई सी लगती है
शाम से इक उमीद थी दिल में
अब वो फलती हुई सी लगती है
शमअ जलती हुई सी लगती है
रात सपनो की राह पर यारो
अब तो चलती हुई सी लगती है
उनसे मिलने की बात जो तय थी
अब वो टलती हुई सी लगती है
हर तमन्ना न जाने क्यों अब तो
दिल को छलती हुई सी लगती है
जाने क्यों ज़िंदगी हमें अपनी
हाथ मलती हुई सी लगती है
शाम से इक उमीद थी दिल में
अब वो फलती हुई सी लगती है
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