शब्द और साखी _ द्वारा लिखित है
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साखी संस्कृत 'साक्षित्' (साक्षी) का रूपांतर है। संस्कृत साहित्य में आँखों से प्रत्यक्ष देखने वाले के अर्थ में साक्षी का प्रयोग हुआ है। कालिदास ने कुमारसंभव (5,60) में इसी अर्थ में इसका प्रयोग किया है। |सिद्धों के अपभ्रंश साहित्य में भी प्रत्यक्षदर्शी के रूप में साखी का प्रयोग हुआ है, जैसे 'साखि करब जालंधर पाए ' (सिद्ध कण्हृपा)।
आगे चलकर नाथ परंपरा में गुरुवचन ही साखी कहलाने लगे। इनकी रचना का सिलसिला गुरु गोरखनाथ से ही प्रारंभ हो गया जान पड़ता है, क्योंकि खोज में कभी-कभी जोगेश्वर साखी जैसे पद्य संग्रह मिल जाते हैं।
आधुनिक देशी भाषाओं में विशेषत: हिंदी निर्गुण संतों में साखियों का व्यापक प्रचार निस्संदेह कबीर द्वारा हुआ। गुरुवचन और संसार के व्यावहारिक ज्ञान को देने वाली रचनाएँ साखी के नाम से अभिहित होने लगीं। कबीर ने कहा भी है, साखी आँखी ज्ञान की। कबीर के पूर्ववर्ती संत नागदेव की साखी नामक हस्तलिखित प्रति भी मिली है परंतु उसका संकलन उत्तर भारत, संभवत: पंजाब में हुआ होगा, क्योंकि महाराष्ट्र में नामदेव की वाणी पद या अभग ही कहलाती है, साखी नहीं।
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