Hindi, asked by sarveshkhadye245, 2 months ago

shahar aur gaav par nibhand​

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Answered by hastipat220
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गाँव को मुख्य रूप से पिछड़ा इलाका माना जाता है और वहीँ शहर को विकसित इलाका माना जाता है।

गाँव और शहर के जीवन में कई अंतर हैं। दोनों अपने आप में जीवन को एक अलग रूप में प्रस्तुत करते हैं। गाँव में भोजन और कपड़ा बनता है, वहीँ शहर में ज्ञान और विज्ञान विकसित होता है।

कई लोगों का मानना है कि गाँवों का जीवन शहर के मुकाबले बहुत खराब होता है। हालाँकि यह सच है कि पिछले काफी समय में गाँवों और शहरों के बीच फैसला बहुत बढ़ गया है, लेकिन अब भी कई मामलों में गाँव शहर से बेहतर हैं।

उदाहरण के तौर पर, गाँवों में साफ़ पानी और हवा लोगों को मिलती है। गाँवों में प्रदुषण की मात्रा बहुत कम होती है। इसके अलावा लोगों को खाने के लिए शुद्ध भोजन मिलता है, क्योंकि वे खुद इसे अपने हाथों से उगाते हैं।

गाँव को मुख्य रूप से पिछड़ा इलाका माना जाता है और वहीँ शहर को विकसित इलाका माना जाता है।

गाँव और शहर के जीवन में कई अंतर हैं। दोनों अपने आप में जीवन को एक अलग रूप में प्रस्तुत करते हैं। गाँव में भोजन और कपड़ा बनता है, वहीँ शहर में ज्ञान और विज्ञान विकसित होता है।

कई लोगों का मानना है कि गाँवों का जीवन शहर के मुकाबले बहुत खराब होता है। हालाँकि यह सच है कि पिछले काफी समय में गाँवों और शहरों के बीच फैसला बहुत बढ़ गया है, लेकिन अब भी कई मामलों में गाँव शहर से बेहतर हैं।

उदाहरण के तौर पर, गाँवों में साफ़ पानी और हवा लोगों को मिलती है। गाँवों में प्रदुषण की मात्रा बहुत कम होती है। इसके अलावा लोगों को खाने के लिए शुद्ध भोजन मिलता है, क्योंकि वे खुद इसे अपने हाथों से उगाते हैं।

गाँव में लोग सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़े होते हैं। यहाँ लोगों का ज्यादातर समय अपने खेतों और घरवालों के साथ बीतता है।

गाँव में लोग बड़ी मात्रा में भक्ति आदि से जुड़े होते हैं। यहाँ के लोग हर त्यौहार आदि को पुरे हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं।

यदि साधारण जरूरतों की बात करें, तो गाँव के लोगों को शुद्ध वायु मिलती है। इसके अलावा यहाँ के लोगों को साफ़ पानी और शुद्ध भोजन और सब्जियां मिलती हैं।

गाँव के लोग अपने हाथ से खेतों में सब्जियां और फल उगाकर खाते हैं।

गाँव में रहने के कई नुकसान भी हैं। गाँव में लोगों को कई सेवाएं आसानी से नहीं मिल पाती है। जैसे कि, गाँव में डॉक्टर आसानी से उपलब्ध नहीं होता है।

डॉक्टर और अच्छी मेडिकल सेवाओं के ना होने की वजह से यहाँ के लोग बिमारी की वजह से जल्दी मर जाते हैं।

इसके अलावा गाँवों में पढ़ाई को लेकर भी समस्या है। गाँव में बहुत कम लोग स्कूल की पढ़ाई को पूरा करते हैं। इन्हीं कारणों से गाँव में पढ़े लिखे लोग बहुत कम होते हैं। जो कुछ पढ़े लिखे होते हैं, वे शहर में पलायन कर जाते हैं।


गाँव और शहर के जीवन में मुख्य अंतर निम्न हैं:

गाँवों में गलियां और सड़कें कम होती हैं। गाँवों में कच्ची सड़क होती हैं। वहीँ शहरों में सैकड़ों सड़कें होती हैं, जो पक्की होती हैं और वे लम्बी चौड़ी होती है।
गाँवों में बहुत कम दुकानें होती हैं, जबकि शहर में बड़ी मात्रा में दुकानें और मॉल होते हैं।
गाँव में गाड़ियाँ बहुत कम होती हैं, वहीँ शहरों में सड़कें गाड़ियों से भरी रहती है। शहर में लगभग हर घर में एक गाड़ी होती है।
गाँव में मुश्किल से एक सिनेमाघर होता है, या वो भी नहीं होता है। जबकि शहरों में ढेरों सिनेमा होते हैं।
गाँव में एक या दो स्कूल होती है और वे भी सरकारी होती हैं, जबकि शहर में बहुत सी प्राइवेट स्कूल होती हैं।
गाँव में शुद्ध वायु होती है लेकिन शहर में वायु प्रदूषित होती है।
Answered by salimkhan83273
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शहर और गाव

एक कहावत है-“गाँव ईश्वर ने बनाए हैं और शहर आदमी ने।”। भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है। ग्रामीण जीवन प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक है जबकि जीवन प्रदुषित और प्राकृतिक आबोहवा से रहित है। जहाँग वातावरण शुद्ध और शांत होता है वहीं शहरों का वातावरण कोला एवं अशुद्ध है।

ग्रामीण लोग सादा जीवन जीने वाले और परिश्रमी होते हैं. वहीं लोग चमक-दमक वाला दिखावटी जीवन जीते हैं और कठोर परिस न करने के कारण रोगों से पीड़ित होते हैं। ग्रामीण सर्दी, गर्मी और बाग में सारा दिन खेतों में कार्य करते हैं, वहीं शहरों में अधिकांश लोग दिनभर ऑफिस में कुर्सियों पर बैठकर कार्य करते हैं। ग्रामीण सुबह जल्दी उठकर हल और बैल लेकर खेतों पर जाते हैं, तो अधिकांश शहरी लोग सब देर तक सोते रहते हैं।

नि:संदेह शहर और गाँव में बहुत अंतर है। ग्रामीणों की पत्नियाँ भी अपने पति के साथ कठिन परिश्रम करती है जबकि शहरों में ऐसा बहुत कम देखने में आता है। गाँववालों का भोजन बहुत ही सादा होता है। वे ज्वार, बाजरा और जौ की रोटी खाते हैं और गेहूँ की रोटी तो वे विशेष अवसरों पर ही खाते हैं जबकि शहरों में सभी गेहूँ की रोटी खाते हैं। कहते भी हैं कि “गाँव के लोग तो मोटा खाते हैं और मोटा ही पहनते हैं।”

शहरी जीवन चमक-दमक और आडम्बरपूर्ण होता है। गाँवों की अपेक्षा शहरों में व्यक्ति विज्ञान के हर आविष्कार का आनंद उठा सकता है और बीमारी की अवस्था में हर प्रकार की चिकित्सा करवा सकता है। परंतु गाँवों में शहरों जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है।

गाँवों में लोग रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हात हैं। वे अपने सुख-दुख आपस में बाँट लेते हैं। वे एक-दूसरे के लिए सदैव तैयार रहते हैं। शाम के वक्त वे चौपाल पर बैठते हैं और एक-दूसर के हालचाल पूछते हैं तथा कहानी-किस्से सुनाते हैं। सर्दियों में वे एक साथ बैठकर आग तापने का आनंद लेते हैं। ग्रामीण लोग किसी अजनबी कभी तन-मन-धन से सहायता करते हैं जबकि शहर में जीवन इसके परीत है। वहाँ किसी के पास समय नहीं है न साथ बैठकर कहानी-किस्से सुनने का, न हाल-चाल पूछने का और न ही आग तापने का। चोर-लुटेरों के डर के कारण शहरी लोग किसी अजनबी की भी कोई मदद नहीं करते।

ग्रामीण लोग अशिक्षित होने के साथ-साथ धार्मिक भी होते हैं। वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय अपनी सहायता के लिए अपने साथ खेतों पर ले जाते हैं, जबकि शहरों में अधिकांश लोग शिक्षित होते हैं और लगभग सभी बच्चे स्कूल जाते हैं।

यह सच है कि गाँवों में ताज़ा शुद्ध हवा, पौष्टिक भोजन और शांत वातावरण मनुष्य के शरीर और मनोमस्तिष्क को स्वस्थ बनाता है जबकि शहरों में इसका सर्वदा अभाव होता है और अधिकांश खाद्य पदार्थ मिलावटी मिलते हैं। इसके बावजूद गाँवों को शहर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। खेतों को कॉलोनियों में तब्दील किया जा रहा है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

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