शहरी जीवन में आए बदलाव
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विकासपुरी में डॉक्टर की पीट-पीटकर हत्या हो या फिर बेगमपुर में सरे बाजार एक शख्स को चाकू से गोदकर मारने की घटना, ये सभी शहरी जीवन में सामाजिक संबंधों में आई शिथिलता की देन है। दिल्ली के संदर्भ में बात करें तो यहां आपसी सामाजिक संबंधों की कच्ची डोर के पीछे अहम कारण यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों का बाहर से आकर बसना है। गांव देहात की बात करें तो वहां आज भी लोग मिलजुल कर रहते हैं और इसी कारण से यदि एक पर कोई विपत्ति आती है तो पूरा गांव एकजुट हो जाता है, लेकिन शहरों में ऐसा संभव नहीं होता है और इसके गंभीर परिणाम विकासपुरी सरीखी घटनाओं के रूप में सामने आते हैं। विकासपुरी में डॉक्टर की हत्या की वजह जितनी मामूली थी, उसे कहीं ज्यादा हैरान करने वाली बात ये थी कि एक आदमी को इस कदर पीटा गया और पड़ोस से किसी के बीचबचाव के लिए सामने आना तो दूर पुलिस को बुलाने तक की जहमत नहीं उठाई गई।
यही शहरी जीवन की सत्यता है। एकदूसरे के सुख-दुख में खड़ा होना तो दूर लोग विपत्ति के समय में किसी पड़ोसी की मदद करने को भी तैयार नहीं होते हैं। जहां तक राजनीति की बात है तो ये विषय तो हर ऐसे प्रकरण में उभरकर सामने आता है। दरअसल, ये ऐसा मौका होता है, जब कोई भी किसी एक खास वर्ग के प्रति अपनी सबसे अधिक संवेदना प्रदर्शित कर सकता है। विकासपुरी की घटना की बात करें तो यहां डॉक्टर की हत्या में किसी एक संप्रदाय के लोगों के शामिल होने की बात पहले सामने आई, लेकिन बात में इसका खंडन हो गया। ऐसे में अब सामाजिक स्तर पर अंतर को इस घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। जहां तक मदद की बात है तो इससे पीछे हटने के कई कारण होते हैं। पहला तो दूसरे की मुसीबत अपने गले क्यों बांधे, दूसरा, पुलिस कार्रवाई का डर और तीसरा, कहीं खुद ही लने के देने ही न पड़ जाए। ये कुछ अहम पहलू है जिसके चलते दिल्ली की सड़कों पर सरेआम, सरे राह लोगों की जान जा रही है और कोई बीच-बचाव के लिए तैयार नहीं हो रहा है।
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