शहर कि आत्मकथा 100words
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(आत्मकथा)
मैं शहर हूँ
मैं शहर हूं। मुझे शहर कहते हैं। आप मुझे गांव का बड़ा भाई समझ सकते हो, क्योंकि गांव छोटा होता है और मैं गांव से बड़ा होता हूं। कभी-कभी मैं गांव से बहुत बड़ा होता हूं। इतना बड़ा कि मेरे अंदर हजारों गांव आ सकते हैं। तब मुझे महानगर कहते हैं गांव का जीवन शांत होता है, लेकिन मेरा जीवन चहल-पहल भरा होता है। गांव में हरियाली है, खुशहाली है, स्वच्छ वातावरण है, शांति है, संतोष है। गांव का जीवन सीधा-साधा सरल होता है। मेरे अंदर शोरगुल है, अशांति है, लोगों की महत्वाकांक्षायें हैं, उनके सपने हैं।
मेरे ऊपर लोगों की महत्वाकांक्षायें और सपनों पूरा करने का बोझ बना रहता है। अधिकतर लोगों के सपने पूरे होते हैं लेकिन कुछ लोगों के सपने पूरे नहीं हो पाते और मेरे अंदर की भीड़ में कहीं खो जाते हैं अपना वजूद खत्म कर लेते हैं।
मेरे अंदर शॉपिंग मॉल होते हैं, बड़े-बड़े थिएटर होते हैं, चौड़ी सड़कें होती हैं, ऊंची-ऊंची आसमान को छूती इमारतें होती हैं। बड़े-बड़े भवन होते हैं। इन सब का बोझ मैं अपने सीने पर लिए रहता हूं। मेरे सीन पर बड़े-बड़े वाहन चलते हैं, बसे चलती हैं, ट्रेने चलती हैं। रंगबिरंगी चमचमाती कारें मेरे सीने पर शान से इठलाती हुई घूमती हैं।
मेरे अंदर बहुत से लोग ऐसे हैं, जो सुख सुविधाओं से भरा ऐशोआराम का जीवन जी रहे हैं तो ऐसे ऐसे लोग भी हैं जो गंदी-मलिन बस्तियों में एकदम निम्न स्तर का जीवन जी रहे हैं। मैं सब तरह के लोगों को अपने अंदर समाहित किए हुए हूं। मेरे अंदर विभिन्न भाषा, धर्म एवं संस्कृति के लोग मिलजुलकर रहते हैं।
काम करने वाले कर्मठ लोगों के लिए मेरे पास काम की कोई कमी नहीं है, क्योंकि मेरे पास उद्योग है, व्यापार है, कंपनिया हैं, बड़े-बड़े दफ्तर हैं।
मेरे अंदर हरियाली का अभाव है क्योंकि मानव अपनी महत्वाकांक्षाओं में मुझे कंक्रीट के जंगलों में बदलता जा रहा है और मेरे अंदर की हरियाली को नष्ट करता जा रहा है। बस यही बात मुझे कचोटती है। जब मेरे अंदर की हरियाली खत्म हो रही है तो मेरे अंदर की हवा भी शुद्ध नहीं रह पा रही है। मेरे अंदर प्रदूषण है, कल-कारखानों द्वारा निकलने वाला जहरीला धुआं है। वाहनों का प्रदूषित धुआं है। यह भी एक मेरा नकारात्मक पक्ष है।
मेरे पास सब कुछ है। हर तरह का ऐशो-आराम, सुख-सुविधाएं हैं। बस मेरे पास नहीं है तो शांति और सुकून, स्वच्छ वातावरण, साफ हवा, हरियाली। ये सब बाते मुझे त्रस्त कर देती हैं, दुखी कर देताी हैं।
जो भी है, यही मेरी नियति है, इसी के साथ मुझे अपने वजूद को बनाये रखना है। मैं शहर हूँ, लोगों के सपनों को पूरा करने का माध्यम।