शहरी क्षेत्रों में शिक्षित बेरोजगारी का विस्तार क्यों हो रहा है
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उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों में बेरोजगारी दर दुनिया में मौजूद बेरोजगारी दर से बहुत ज्यादा है. महिलाओंं में बेरोजगारी पुरुषों की तुलना में लगभग तिगुना ज्यादा है. बेरोजगारी थामने के उपाय नहीं हुये तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं.
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जिस वक्त हम हिन्दुस्तानी लोग विश्व के रंगमंच पर अपनी-अपनी उपलब्धियों की विजय-पताका फहराने और अंतरिक्ष भेदने के अपने कारनामे के बखान में मगन थे ठीक उसी वक्त दो जरूरी रिपोर्ट सार्वजनिक जनपद में आये मगर अदेखे रह गये. उच्च शिक्षा पर केंद्रित आठवां सालाना सर्वेक्षण 2018-19 पिछले हफ्ते मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जारी किया. इस सालाना रिपोर्ट के जारी होने के आस-पास एक और रिपोर्ट सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनॉमी (सीएमआइई) ने अनएम्पलॉयमेंट इन इंडिया- ए स्टैटिस्टिकल प्रोफाइल (मई-अगस्त 2019) प्रकाशित की. ये रिपोर्ट चार माह के अन्तराल से साल में तीन बार प्रकाशित होती है.
दोनों ही रिपोर्ट को साथ मिलाकर देखें तो आंखों के आगे एक तस्वीर उभरती है कि अपने देश में शिक्षित लोगों के बीच बेरोजगारी बड़ा विकराल रूप धारण करती जा रही है. बेरोजगारी का ये विकराल रूप आर्थिक मंदी का ही एक संकेत है और सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकता है.
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