शहरों की तरफ पलायन, गाँवों व
शहरीकरण आदिका बड़े ही मामि
ढंग से वर्णन किया है।
दिल करता है धुकुर-पुकुर ।
सुरसतिया के दोनों लड़के
सूरत गए कमाने।
गेहूँ के खेतों में लेकिन
गिल्ली लगीं घमाने।
लँगड़ाकर चलती है गैया
सड़कों ने खा डाले खुर।
दीदा फाड़े शहर देखता
गाँव देखता टुकुर-टुकुर।
कल्पना पल्लवन
'भारतीय संस्कृति के
देहातों में होते हैं। इस त
अपने विचार लिखो।
कृति ३ : (स्वमत अभिव्यक्ति)
अभिव्यक्ति)
(१) पद्यांश में दी गई नीचे वाली आठ पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
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in do line ka ans hai sadko me gadde ho gaye hai aur dida bahut gusse me hai aur sochne ki sakti bharat ki galiyon me hai aur bharat ki jo sans kriti hai bo longo me basti hai
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