शहर में लोगों कीभीड बढने का कारण
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दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत- शहरों में रहती है. 2050 तक ये आंकड़ा 68 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है. इस बढ़ोतरी में ज़्यादातर कुछ देशों का ही योगदान रहेगा. एशिया में भारत और चीन, अफ्रीका में नाइजीरिया वैश्विक शहरीकरण की अगुवाई करेंगे.
कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित 10 देश, कुछ अपवादों को छोड़कर, बताते हैं कि किस तरह उनके शहर और शहरी इलाक़ों में बीमारी न सिर्फ़ सबसे ज़्यादा तेज़ी से फैली बल्कि सबसे ज़्यादा मौतें भी हुईं. जैसा कि नीचे के आंकड़ों में बताया गया है सामान्य तौर पर इन सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में सिर्फ़ एक बेहद घने और बड़े शहरी इलाक़े में पूरे देश के कुल मामलों के 32.19 प्रतिशत मामले मिले हैं. कोरोनावायरस से जुड़ी कुल मौतों के मामले में भी इन देशों में सिर्फ़ एक बड़े शहर में 29.53 प्रतिशत मौतें दर्ज की गई हैं.
कोविड19 की वजह से विश्व स्तरीय मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर वाले दुनिया के सबसे अमीर शहरों ने जिस बर्बादी का अनुभव किया है, उससे साफ़ संकेत मिलता है कि भले ही उच्च घनत्व वाले शहरी इलाक़े बड़ी आबादी को रख सकते हैं लेकिन इस तरह के अभूतपूर्व ख़तरे की हालत में वो कमज़ोर और रक्षाहीन हैं. शहरी नियोजकों के दृष्टिकोण के हिसाब से शहरों में आबादी का घनत्व आर्थिक गतिविधि को बढ़ाता है, साथ ही ये भी सुनिश्चित करता है कि दुर्लभ सार्वजनिक संसाधन और सेवाएं एक बड़ी आबादी के लिए इस्तेमाल की जा सके. लेकिन आबादी का घनत्व एक ख़तरनाक बोझ बन गया है, ख़ास तौर पर कोविड19 जैसी महामारी के वक़्त जो इंसानी बस्तियों में बेकाबू होकर फैलती है. विकासशील देशों की मेगासिटी में जहां लोग बेहद तंग और अक्सर गंदी जगह में रहते हैं, यात्रा करते हैं और काम करते हैं, उनके लिए हालात ख़ास तौर पर असुरक्षित हैं. ये हालात सामुदायिक स्तर पर, जिसे संक्रमण का स्टेज 3 (सबसे ज़्यादा फैलना) भी कहा जाता है, महामारी के फैलने के लिए आदर्श माहौल मुहैया कराते हैं.