शहरों में नगर निगम का कार्य बंद हो जाने पर क्या होगा
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Seher me koi bhi discipline ya saaf safai nhi rhegi
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कोटद्वार। अब तक तीन किमी के दायरे में सिमटी कोटद्वार नगर पालिका के सीमा विस्तार को उत्तराखंड सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इस विषय पर बहस तेज हो गई है। नगर के लोग जहां इसे क्षेत्र के विकास से जोड़कर देख रहे हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग प्रस्तावित नगर निगम को नफा-नुकसान के हिसाब से देख रहे हैं। दुगड्डा ग्राम प्रधान संघ समेत कई जनप्रतिनिधि पूरे इलाके के गांवों को नगर निगम में शामिल करने को तुगलकी फरमान बताने लगे हैं।
भाबर की चारों पट्टियों सनेह, सुखरौ, पदमपुर मोटाढांक और हल्दूखाता में ग्राम प्रधान, बीडीसी सदस्य और पंचायत प्रतिनिधिनियों की बैठक में नगर निगम के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनने लगी है। कहा कि सरकार ने ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बिना नगर निगम उन पर थोपने का प्रयास किया है। चुनाव में नगर निगम मुद्दा नहीं था। लोगों की प्राथमिकता में नगर निगम नहीं, बल्कि चिलरखाल-लालढांग मार्ग का पक्कीकरण, जिला निर्माण और अन्य विकास कार्य रहे हैं। नगरीय स्वरूप धारण किए शहर से सटे गांवों को शामिल करने की बात तो समझ में आती है, लेकिन नगर निगम के मानक पूरा करने के लिए सिगड्डी और झंडीचौड़ के ग्रामीण इलाकों को नगर निगम में शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है।