शहर और गाँव में करोना का तुलनात्मक अनुच्छेद
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Explanation:
कोरोना वायरस के कारण भारत के भीतर विस्थापन और पलायन की एक समस्या अपने गंभीर रूप में सामने आई है. गांव से शहर और शहर से गांव का ये रास्ता अपने ही देश में विस्थापितों की हालत बयान करता है.
पति के कंधे पर बोरी में भरा सामान, पत्नी की गोद में बच्चा, चेहरे पर खौफ, चिंता और अनहोनी के डर का मिला जुला भाव. पीछे लंबी कतारों में पैदल चलते बच्चे, औरत और मर्द. सब की मंजिल सैकड़ों किलोमीटर दूर अपना गांव. अपना वतन, जो सुरक्षा का अहसास देता है, अपनों के पास होने का सुकून देता है, जो किसी भी जरूरत में मदद करने को तैयार होंगे. लेकिन इस सुरक्षा घेरे तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है. बस, रेल और टैक्सी सब बंद. उस पर से पुलिस का पहरा जो आगे बढ़ने देने को तैयार नहीं. अनिश्चितता में भागते इन लोगों की कहानी भारत में बार बार दोहराई जाती है. फिर भी भागने वाले लोग अकेले होते हैं. उन्हें सहारा होता है तो सिर्फ उनके साथ भाग रहे दूसरे लोगों का.
कोरोना ने शहर से गांवों की ओर भागने वाले लोगों की कहानी में एक और अध्याय जोड़ दिया है. 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जानलेवा वायरस को रोकने के लिए 21 दिन के लॉकडाउन का एलान किया, तो यह उस वक्त तक किसी भी देश में लगे लॉकडाउन से लंबा था. करीब डेढ़ अरब की आबादी रातों-रात कर्फ्यू जैसी स्थिति में चली गई. भारत में लागू हुए इस लॉकडाउन का हर तबके के इंसान के लिए अलग मतलब है. अक्सर कहा जाता है, ‘एक भारत में कई भारत हैं.' ये लॉकडाउन की घोषणा के अगले दो दिन के अंदर शहरों की सीमाओं पर लगी भीड़ ने भी दिखा दिया ।
Explanation:
आज हम संभवतः दशक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं
कोराना वायरस से जनित बीमारी covid 19ने पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में के लिए है भारत में भी स्थिति दिन दिन बदतर होती का रही है । पहले पहल बड़े शहरों में आती ये बीमारी अब gaav की ओर बढ़ती दिखाई डी रही है जो इसका और भी भयावह रूप है ।
शहर में जहां मूलभूत सुविधा आसानी से उपलब्ध है gaav में में हालत उस तरह के नहीं है और इस कारण से शहर के तुलना में गाव को इस बीमारी से ज्यादा खतरा साफ दिखाई देता है।
इसका दूसरा कारण यह भी है कि गाव के लोग आपस में ज्यादा मेलजोल रखते है और जो इस बीमारी को बढ़ावा देने में सहायक साबित होता है।